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रक्तपिशाच का रक्तमणि ८१

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ८१

वज्रदंत कोई साधारण योद्धा नहीं था। वह पर्वत जैसा दिखता था, विशाल, शक्तिशाली और अटल उसका शरीर था। उसके शरीर पर पुराने ज़ख्मों के निशान उसके अनगिनत युद्धों के साक्षी थे। उसका चौड़ा, लोहे जैसा वक्ष, मज़बूत मुट्ठियाँ और पैनी निगाहें किसी के भी दिल में खौफ पैदा कर देतीं। वह जहाँ भी चलता, उसके वज़न से ज़मीन भी कुचल दी जाती।

हर कदम पर उसकी तलवार म्यान से रगड़ खाती, जिससे एक हल्की लेकिन तीखी आवाज़ निकलती, यही उसके अस्तित्व की गर्जना थी। सर्पकला उसके बगल में चल रही थी, उसकी चाल धीमी और सतर्क थी। वह उसे देखती रही, उसके मन को शांत करने की कोशिश करती रही। उसका चेहरा भावशून्य था, लेकिन उसके मन में विचारों का तूफ़ान उमड़ रहा था।

सर्पकला मन ही मन सोच रही थी कि यह महान योद्धा राजवीर को आसानी से हरा सकता है। लेकिन उसे यकीन था कि सिर्फ़ अपनी ताकत के बल पर लड़ने वाला यह आदमी राजवीर की चालाक बुद्धि के हाथों में कम पड़ सकता है। वह यह भी जानती थी कि वज्रदंत किसी की नहीं सुनता। उसके दिल में ज़रा भी दया नहीं थी, और उसे किसी भी रणनीति से ज़्यादा अपनी ताकत पर भरोसा था।

अगर राजवीर को मात करनी होगी, तो उसे आर्या पर ध्यान देना होगा, यही बात वज्रदंत के दिमाग में ठोकनी थी ये सर्पकला जानती थी। लेकिन वह बहुत सावधान थी; क्योंकि वज्रदंत जैसे क्रूर योद्धा से निपटना किसी खूँखार शेर से खेलने जैसा था। अगर उसे एक बार गुस्सा आ जाए, तो वह बिना किसी हिचकिचाहट के सामने वाले को मार डालेगा, चाहे वह राजवीर हो, आर्या हो, या खुद सर्पकला!

सफर की शुरुआत में ही सर्पकला ने उससे बातचीत शुरू कर दी थी। वह सामान्य से ज़्यादा संकोची लग रही थी।

"वज्रदंत, तुम एक योद्धा हो, एक शक्तिशाली योद्धा। लेकिन तुम राजवीर की कपटी चालों के बारे में नहीं जानते। वह बेहद चालाक है। उस पर भरोसा करना अपनी मौत को दावत देना होगा।"

वज्रदंत ने उसकी तरफ़ देखा, लेकिन उसके चेहरे पर कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं थी। वह चलता रहा, लेकिन सर्पकला के शब्दों ने उसके मन में एक हल्का सा विचार कौंध दिया। सर्पकला ने अपनी आवाज़ थोड़ी और तेज़ करते हुए कहा,

"राजवीर सिर्फ़ तलवार से लड़ने वाला योद्धा नहीं है। वह पहले उसके मन से दुश्मनों को हराता है, और उसके बाद ही उन्हें ज़ख्म देता है। वह सिर्फ़ युद्ध के मैदान में ही नहीं लड़ता, बल्कि शब्दों के खेल से भी लोगों को अपनी तरफ़ मोड़ लेता है। क्या तुम्हें लगता है कि वह तुमसे ईमानदारी से लड़ेगा? बिल्कुल नहीं! वह तुम्हारी ताकत का इस्तेमाल तुम्हें धोखा देने के लिए ही करेगा!"

वज्रदंत उसे जवाब देना चाहता था, लेकिन वह चुप रहा। उसे अपनी ताकत पर पूरा भरोसा था। उसने कई शक्तिशाली योद्धाओं को पराजित किया था। लेकिन सर्पकला नहीं रुकी। उसने आगे कहा,

"अगर तुम रक्तमणि हासिल करना चाहते हो, तो तुम सिर्फ़ राजवीर पर ध्यान केंद्रित मत करो। आर्या, वही उसकी असली कमज़ोरी है। वह उसके लिए किसी भी हद तक जा सकता है। अगर तुम उसे अपने कब्ज़े में ले लोगे, तो राजवीर ख़ुद ही आत्मसमर्पण कर देगा। और फिर सोचो, तुम्हारे लिए रक्तमणि हासिल करना कितना आसान हो जाएगा!"

सर्पकला के शब्द अब ज़हर की तरह टपक रहे थे। वज्रदंत ने अपनी आँखें सिकोड़ लीं। अब तक उसने केवल ताकत के बल पर ही लड़ाइयाँ जीती थीं, लेकिन इस बार, सर्पकला ने उसके दिमाग में एक नया रास्ता बना दिया था, जो अधिक भयानक और अधिक प्रभावी था।

वज्रदंत उसकी बातों पर आधा ध्यान दे रहा था। वह जानता था कि राजवीर उसके लिए कोई समस्या नहीं बनेगा। लेकिन सर्पकला ने आगे कहा,

"उसने बहुतों को धोखा दिया है। उसे शब्दों पर महारत हासिल है, वह किसी को भी बेवकूफ बना सकता है। अगर वह कहता है कि मेरे पास रक्तमणि नहीं है, तो उस पर विश्वास मत करना। असल में, उसने उसे कहीं छिपा रखा होगा।"

वज्रदंत ने हल्की मुस्कान दी। "सर्पकला, क्या तुम्हें लगता है कि मैं उसकी बातों में आ जाऊँगा? मैं उसे देखते ही ज़मीन पर पटक दूँगा!"

सर्पकला चुपचाप वज्रदंत की आत्मविश्वास भरी आवाज़ सुन रही थी। उसके चेहरे पर एक धुंधली मुस्कान आ गई, मानो उसने उसके घमंडी शब्दों का पहले ही अंदाज़ा लगा लिया हो। वह धीरे से आगे बढ़ी और अपनी कोमल लेकिन तीखी आवाज़ में बोली,

"वज्रदंत, तुम्हारी शक्ति असीम है। तुम्हारे एक ही वार से सामने वाला योद्धा धराशायी हो सकता है। लेकिन कभी-कभी, युद्ध सिर्फ़ शक्ति का नहीं होता। राजवीर एक ऐसा दुश्मन है जो सिर्फ़ तलवार से नहीं हारता, उसे पहले मन से हराना होगा। क्या तुम्हें लगता है कि तुम उसे पहले ही वार में ज़मीन पर गिरा सकते हो? यह इतना आसान नहीं होगा।"

सर्पकला एक पल के लिए रुकी, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। उसने आगे कहा,

"सोचो राजवीर ने अब तक कितनी लड़ाइयाँ जीती हैं। अगर वह सिर्फ़ अपनी तलवार के बल पर जीता होता, तो वह कभी ज़िंदा नहीं बचता। उसका असली हथियार उसका दिमाग़ और उसकी चतुराई है। वह तुम्हें शक्ति से नहीं जीत सकता, लेकिन वह तुम्हें धोखा देकर जीत सकता है। उसके शब्दों में कुछ ऐसा ज़रूर होगा जो तुम्हें एक पल के लिए अपने फ़ैसले पर शक करवा देगा। और एक बार तुम्हारे मन में ज़रा भी उलझन हो, तो समझ लेना, वह पहली ही चाल जीत चुका है।"

वज्रदंत ने फिर उसकी ओर देखा। उसे लगा कि उसकी बात में सच्चाई है, लेकिन उसका अभिमान उसे मानने नहीं दे रहा था। उसने उसकी ओर उपहास भरी नज़रों से देखा और ज़ोर से हँसा।

"सर्पकला, मैं किसी भी भ्रम में नहीं फँसता। मैं जो ठान लेता हूँ, वही करता हूँ। मैं जब राजवीर के सामने खड़ा रहूंगा तब, उसकी सारी चालाक योजनाएँ पल भर में ध्वस्त हो जाएंगी। मेरे घाव के आगे उसकी बातें भी बेअसर रहेंगी!"

सर्पकला ने गहरी साँस ली और धीरे से मुस्कुराई। "तो देखते हैं, वज्रदंत। यह लड़ाई तुम्हारी ताकत की है या उसकी चतुराई की, यह जल्द ही साफ़ हो जाएगा।"

सर्पकला मन ही मन क्रोधित थी। वज्रदंत उसकी बातों को अनसुना कर रहा था। लेकिन उसने एक बार और कोशिश की।

"अगर तुम रक्तमणि प्राप्त करना चाहते हो, तो पहले आर्या को मार डालो। क्योंकि जब तक वह है, राजवीर कुछ भी करेगा, लेकिन रक्तमणि तुम्हे नहीं देगा। लेकिन अगर आर्या ही नहीं रही, तो उसका जीवन निरर्थक हो जाएगा। फिर वह खुद ही रक्तमणि तुम्हें सौंप देगा।"

वज्रदंत ने कुछ देर सोचा। सर्पकला अपनी बातों से उसे समझाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसे यह सब अनावश्यक लग रहा था।

"जो भी मेरे रास्ते में आएगा, वह मरेगा। चाहे आर्या हो या राजवीर।"

सर्पकला ने फिर कहा, "लेकिन एक बात याद रखना, राजवीर अकेला नहीं है। उसके साथ बलदेव है, और कुछ और भी होंगे। वे सब तुम्हारे रास्ते में आएँगे। उनसे लड़ने में अपना समय बर्बाद मत करना, वरना राजवीर और आर्या भाग जाएँगे। अपनी ताकत पर भरोसा रखो, लेकिन लापरवाह मत बनो।"

वज्रदंत फिर मुस्कुराया। "मेरा बल ही मेरा सबसे बड़ा हथियार है। मैं केवल अपने बल पर ही युद्ध करता हूँ। जो भी मेरे सामने आएगा, मैं उसे धूल में मिला दूँगा। राजवीर, बलदेव, उसके साथी, वे सब मेरी तलवार के सामने टिक नहीं पाएँगे!"

सर्पकला उसके अहंकारी स्वभाव को घूर रही थी। वह जानती थी कि यह आदमी किसी की नहीं सुनेगा। वह सिर्फ़ अपने मन की करेगा। लेकिन अब उसे उसकी ज़रूरत थी, राजवीर तक पहुँचने के लिए।

"ठीक है," उसने धीमी आवाज़ में कहा, "जैसा तुम सोचो वैसा करो। बस एक बार आर्या तुम्हारे हाथ में आ जाए, फिर कुछ नहीं बचेगा।"

वज्रदंत उसकी ओर मुस्कुराया और बोला, "मेरा लक्ष्य साफ़ है। मैं रक्तमणि लेकर लौटूँगा। फिर राजवीर उसे खुद मुझे दे दे, या मैं उसे आर्या के मरे हुए शरीर के साथ घसीटकर ले जाऊँ!"

सर्पकला मन ही मन संतुष्टि से मुस्कुराई। वह सफल हो गई थी, वज्रदंत अब उसकी मर्ज़ी से काम कर रहा था। और उसकी अपार शक्ति से, राजवीर को हराना आसान था।

वज्रदंत और सर्पकला अब तेज़ी से राजवीर की ओर बढ़ने लगे। उनके मन में बस एक ही लक्ष्य था, आर्या का अंत और रक्तमणि पर कब्ज़ा!

क्रमशः

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