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रक्तपिशाच का रक्तमणि ८२

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ८२

कालेश्वर जंगल से गुज़र रहा था, तभी उसकी पैनी नज़रों ने एक जानी-पहचानी हरकत देखी। घने जंगल से दो आकृतियाँ आगे बढ़ रही थीं। उन्होंने धीरे से आँखें खोलीं और उसके मन में एक विचार कौंधा, ये वज्रदंत और सर्पकला हैं! एक पल के लिए तो उसे यकीन ही नहीं हुआ। वज्रदंत खुद यहाँ आया हुआ हैं? इसका मतलब था कि सहस्त्रपाणि अब अपनी आखिरी चाल चल रहा है। कालेश्वर ने तुरंत हिसाब लगाया, अगर यह वज्रदंत राजवीर और बलदेव के पीछे चला गया, तो वह उन्हें ज़िंदा नहीं छोड़ेगा।

कालेश्वर ने साँस रोककर सोचा। सामने का दृश्य उसकी आँखों के सामने साफ़ था, वज्रदंत के विशाल शरीर की परछाई घने जंगल से आगे बढ़ रही थी, जबकि सर्पकला सावधानी से, परछाईं की तरह उसके साथ-साथ चल रही थी। वज्रदंत के यहाँ आने का सिर्फ़ एक ही मतलब था, राजवीर और बलदेव बहुत बड़े खतरे में है। सहस्त्रपाणि अब सीधे अंतिम प्रहार करने कोशिश कर रहा है। वज्रदंत कोई साधारण योद्धा नहीं था, वह विनाश का साक्षात अवतार था।

उसके हाथों से बचना नामुमकिन था। कालेश्वर ने मन ही मन सोचा, राजवीर और बलदेव अगर बड़े योद्धा होकर भी, क्या वे इस विशालकाय पिशाच शक्ति का सामना कर पाएंगे? और अगर वज्रदंत यहाँ पहुँच गया, तो न सिर्फ़ वे, बल्कि पूरा गाँव संकट में पड़ जाएगा। अब समय बहुत कम बचा था। उसने गहरी साँस ली और निश्चय किया, उसे रोकना ही होगा, उसे यह करना ही होगा।

कालेश्वर का मन अभी भी उथल-पुथल में था। उसे याद था कि राजवीर की वजह से ही उसे कई अपमान सहने पड़े थे, लेकिन साथ ही, उसके दिल में कहीं एक अलग ही भावना पनप रही थी। वह साफ़ देख सकता था कि वज्रदंत जैसे विशालकाय और क्रूर योद्धा से लड़ना मौत को दावत देने जैसा था। सहस्त्रपाणि ने अपने महत्वपूर्ण योद्धा को इस युद्ध में भेजा था, और अगर कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा, तो राजवीर और बलदेव का अंत निश्चित था।

लेकिन यह सिर्फ़ राजवीर तक ही सीमित नहीं था। इसका असर आर्या और पूरे गाँव पर पड़ता। अगर वज्रदंत ने अपनी विनाशकारी शक्ति दिखाई, तो इस गाँव का सफाया होने में ज़्यादा समय नहीं लगेगा। ये विचार उसके मन के क्रोध को कम करने लगे। उसने मुट्ठियाँ भींच लीं और खुद से पूछा, क्या वह इसे अकेले रोक सकता है? लेकिन एक बात उसे पक्की पता थी, वह बिना कोशिश किए पीछे नहीं हटनेवाला था।

उसने ऊपर देखा। आगे का अँधेरा जंगल का रास्ता जाना-पहचाना था। समय अब भाग रहा था, और हर पल कीमती था। वज्रदंत और सर्पकला गाँव की ओर आगे बढ़ रहे थे, और जल्द ही वे राजवीर के घर पहुँचने वाले थे। कालेश्वर ने नाक से गहरी साँस ली और तेज़ी से अँधेरी परछाइयों में घुलने-मिलने के लिए कदम बढ़ाए। अब उसका एकमात्र रास्ता राजवीर को आगाह करना था। वह जानता था कि यह फैसला लेना आसान नहीं होगा, लेकिन एक बार कदम बढ़ा लेने के बाद, पीछे मुड़ने का कोई रास्ता नहीं था। अब यह संघर्ष उसका भी था। जंगल में हवा ठंडी होती जा रही थी, लेकिन कालेश्वर के मन का तूफ़ान और भी तेज़ होता जा रहा था।

जैसे ही कालेश्वर एक छोटे से रास्ते से गाँव पहुँचा, उसने सबको आगाह कर दिया। वह सीधा बलदेव के पास गया और बोला, "वज्रदंत गाँव में आ रहा है! वह कोई इंसान नहीं, राक्षस है। एक बार यहाँ पहुँच गया तो विनाश किए बिना नहीं रुकेगा। तुम्हें सावधान रहना होगा।"

बलदेव अविश्वास से कालेश्वर को देखता रहा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि राजवीर से हमेशा दुश्मनी रखने वाला कालेश्वर अचानक मदद के लिए क्यों आ गया। लेकिन उसकी आँखों में गंभीरता और तत्परता साफ़ दिखाई दे रही थी। वह कोई बड़ी बात कह रहा था, जिसे नज़रअंदाज़ करना नामुमकिन था।

"वज्रदंत!" बलदेव ने डरते हुए ऊपर देखते हुए मन ही मन बुदबुदाया। उसने इस योद्धा के बारे में सुना था, एक विशालकाय, निर्दयी और अजेय योद्धा की पहचान, जो सिर्फ़ मार-काट के लिए जाना जाता था। जब तक सामने वाला मर न जाए, उसके वारों की तीव्रता कम नहीं होती थी। गाँव अभी भी शांत था, लेकिन वज्रदंत पल भर में यहाँ पहुँच जाता, और फिर हंगामा मच जाता।

बलदेव ने गहरी साँस ली और तेज़ी से आगे बढ़ने लगा। उसने राजवीर को पुकारा, और दूसरी ओर गाँव के कुछ भरोसेमंद लोगों को आगाह भी किया। कालेश्वर के शब्द उसके दिमाग़ में गूंज रहे थे,

"वह तब तक नहीं रुकेगा जब तक वह विनाश न कर दे।" अब सवाल सिर्फ़ राजवीर की सुरक्षा का नहीं, बल्कि पूरे गाँव का था।

गाँव के कुछ लोगों ने पहले ही सावधानी से पहरा देना शुरू कर दिया था। वज्रदंत पर सुबह सीधे हमला करना नामुमकिन था, इसलिए बलदेव ने सोचा कि रात में ही उसपर हमला करने का फ़ैसला किया जाए, हमें भी रात के लिए तैयार रहना चाहिए।

रात होते-होते गाँव में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। सबको पता था कि मुसीबत आने वाली है। राजवीर, बलदेव और आर्या घर में जाग रहे थे। बाहर पहरेदार भी सतर्क थे।

अचानक, गाँव वालों के कान खड़े हो गए। घुटी हुई साँसें और अस्थिर निगाहें डर के संकेत थे। रात के अँधेरे में, अगर कहीं दूर एक पत्ता भी हिलता, तो साफ़ सुनाई देता। और फिर... वह आवाज़ आई। भारी, भयावह और चुनौतीपूर्ण। ज़मीन पर पड़ते उन कदमों की आहट हवा में फैल गई, मानो धरती ख़ुद उसकी मौजूदगी की गवाही दे रही हो। पहरेदार एक-दूसरे को घूरने लगे। बलदेव ने अपनी तलवार कस ली। आर्या ने एक गहरी साँस ली, उसके मन में अनगिनत विचार घूमने लगे। राजवीर चुप था, लेकिन उसका हाथ धीरे-धीरे उसकी पट्टे पर चला गया।

"वह आ गया है,"कालेश्वर ने सतर्क स्वर में बुदबुदाया। उस क्षण, मानो समय ही रुक गया हो। गाँव के प्रवेश द्वार पर एक विशाल आकृति की परछाईं दिखाई दी। वह हिल रही थी। और वज्रदंत उसके सामने खड़ा था।

क्षण भर में, एक भयंकर गर्जना हुई और वज्रदंत ने अपने सामने खड़े व्यक्ति को उठाकर पटक दिया। लोग चीख उठे। उसी क्षण कुछ और लोग उस पर झपटे, लेकिन उसने उन्हें एक ही वार में दूर फेंक दिया। वज्रदंत कोई साधारण योद्धा नहीं था, उसका शरीर कवचसे बना था, किसी भी वार का उस पर कोई असर नहीं होने वाला था।

राजवीर और बलदेव सावधानी से आगे बढ़े। वज्रदंत के विशाल शरीर का भारी प्रभाव उनके सामने था। बिना एक क्षण की भी हिचकिचाहट के, बलदेव ने अपनी तलवार निकाली और उस पर झपटा। उसके वार में शक्ति थी, लेकिन वज्रदंत के लिए यह पर्याप्त नहीं थी। वज्रदंत ने तलवार के वार को केवल एक हाथ से रोक लिया, मानो उसके लिए कोई खेल खेला जा रहा हो।

एक क्षण के लिए बलदेव असमंजस में पड़ गया, लेकिन उसे मौका ही नहीं मिला। वज्रदंत ने बड़ी तेजी से अपना हाथ घुमाया और बलदेव की छाती पर एक भयानक घाव कर दिया। एक शक्तिशाली वार के साथ, बलदेव हवा में उड़ गया और दूर दीवार से टकराया।

'धड़ाम' ! उस आवाज़ से पूरा गाँव दहल गया। बलदेव वहीं गिर पड़ा, उसकी साँसें धीमी हो गईं और पल भर में वह बेहोश हो गया। वज्रदंत ने उसे तिरस्कार भरी नज़रों से देखा और फिर अपनी नज़र सीधे राजवीर पर गड़ा दी।

"अब तुम्हारी बारी है," वह गुर्राया।

राजवीर आगे बढ़ा और उस पर हमला कर दिया। तलवार चमकी, लेकिन वज्रदंत तेज़ी से एक तरफ़ हट गया। उसने राजवीर को अपनी बाहों में उठाया और ज़मीन पर पटक दिया। राजवीर के सीने में असहनीय दर्द हुआ। उसने फिर उठने की कोशिश की, लेकिन वज्रदंत ने उसकी छाती पर ज़ोर से लात मारी और राजवीर ज़मीन पर गिर पड़ा।

राजवीर अभी भी उठने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी हरकतें धीमी हो गई थीं। तभी सर्पकला धीरे-धीरे आगे आई। उसके चेहरे पर एक टेढ़ी मुस्कान थी। उसने धीरे से वज्रदंत की ओर देखा और धीमी आवाज़ में कहा,

"राजवीर अभी साँस ले रहा है, लेकिन वह रक्तमणि नहीं छोड़ेगा। आर्या को खत्म कर दो, फिर देखो वह खुद तुम्हारे हाथ में रक्तमणि देता है या नहीं!"

वज्रदंत का चेहरा क्रूर हो गया। वह मुड़ा और घर की ओर चल पड़ा। आर्या अभीभी अंदर थी, हाथ में हथियार लिए तैयार खड़ी थी। लेकिन वज्रदंत कोई साधारण दुश्मन नहीं था जिसका सामना उसे करना था। वह एक विनाशकारी योद्धा था। उसका एक हमला सब कुछ तबाह कर सकता था।

वह घर में दाखिल हुआ और आर्या को देखते ही उसके चेहरे पर एक भयानक मुस्कान फैल गई।

"आज, तुम्हारा अंत निश्चित है !" वह चिल्लाया और उस पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा।

क्रमशः


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