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रक्तपिशाच का रक्तमणि ८६

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ८६

सहस्त्रपाणि सिंहासन पर बैठा था, उसकी आँखें बंद थीं, वह एक क्षण के लिए अपनी विजय की कल्पना कर रहा था। उसके मन में बस एक ही विचार था, गाँव अब राख में बदल गया होगा, आर्या और राजवीर गिर गए होंगे, और वज्रदंत विजयी होकर लौट रहा होगा। उसके होठों पर एक धीमी मुस्कान आ गई। उसने राजसभा में उपस्थित अपने सैनिकों की ओर देखा और कहा,

"आज हमारी विजय का उत्सव मनाया जाएगा। हम इस दुनिया के इतिहास में सबसे शक्तिशाली बन चुके हैं!" सभा में उपस्थित लोग खुशी से झूम उठे, लेकिन तभी सभी ने एक सैनिक को सिंहासन कक्ष के द्वार की ओर से दौड़ते देखा।

एक जासूस दौड़ता हुआ आया, इतनी ज़ोर से पैर पटक रहा था कि किले की दीवारें काँप उठीं। जासूस पसीने से तर था, उसकी साँसें तेज़ थीं। उसके चेहरे पर बेचैनी साफ़ दिखाई दे रही थी। सहस्त्रपाणि ने उसे देखकर हल्का सा मुस्कुराया।

"आओ..... आओ...... विकर्ण..... मुझे जल्द से जल्द वह खुशखबरी दो।"

"बताओ, उस योद्धा की हार कैसे हुई? क्या आर्या की जान ली गई?" उसने उम्मीद से पूछा। लेकिन जासूस कुछ कह पाता, उससे पहले ही उसने धीरे से झुककर सुरक्षा की याचना की। जैसे ही जासूस ने सहस्त्रपाणि से सुरक्षा की याचना की, उसका माथा ठनका।

"क्या हुआ? जल्दी बोलो!" उसकी आवाज़ ठंडी और अधिकारपूर्ण थी। उसे देखकर सहस्त्रपाणि और भी क्रोधित हो गया।

"तुम सुरक्षा क्यों माँग रहे हो? मैं पूछ रहा हूँ, विजय की खबर कहाँ है?" सहस्त्रपाणि की आवाज़ दरबार में गूँज उठी। जासूस ने काँपते हुए उत्तर दिया।

"महाराज... चीजें वैसी नहीं हुईं जैसी हमने उम्मीद की थी..." यह सुनते ही सहस्त्रपाणि की आँखें चौड़ी हो गईं। दरबार में एक सन्नाटा छा गया।

जासूस रुक गया, और काँपती हुई आवाज़ में बोलने लगा।

"महाराज... खबर थोड़ी बुरी है।"

सहस्त्रपाणि एक पल के लिए स्तब्ध रह गया। उसके चेहरे की मुस्कान गायब हो गई। उसने अपना माथा रगड़ते हुए जासूस को घूरा।

"क्या मतलब है? साफ़-साफ़ बोलो!"

जासूस के माथे पर पसीना बहने लगा। भय के हज़ारों कड़वे काँटे उसके हृदय में चुभने लगे। वह जानता था कि यह समाचार सुनते ही सहस्त्रपाणि क्रोध की लहर में उसे क्षण भर में उड़ा देंगे। लेकिन सच्चाई को छिपाना उसके बस में नहीं था। वह अधीरता और घुटन से काँपते हुए आगे बढ़ा और बोला।

"महाराज... वज्रदंत..." वह एक क्षण के लिए रुका। सहस्त्रपाणि ने उस पर गहरी नज़र गड़ा दी।

"बोलो!" सिंहासन से एक आवाज़ आई, जिसे सुना जाना ज़रूरी था। जासूस का गला सूख गया। अंततः उसने कठिन शब्द कहा।

"मर गया।"

एक क्षण के लिए, सभा में एक खामोशी छा गई। सहस्त्रपाणि की निगाहें शब्दों के अर्थों को ध्यान से तौल रही थीं। उसके चेहरे पर एक अजीब सा गुस्सा दिख रहा था।

"मर गया?" उसकी आवाज़ अविश्वास से भरी हुई थी। वह हँसा, जिस तरह एक आदमखोर बाघ अपने शिकार पर हँसता है।

"मेरा अजेय योद्धा पराजित?" उसने अपने होंठ काट लिए, उसे विश्वास नहीं हो रहा था। उसने उंगलियाँ चटकाईं और अचानक अपने सिंहासन से उठ खड़ा हुआ।

"यह असंभव है!" उसकी आवाज़ पूरे दरबार में बिजली की तरह गूँज उठी। जासूस अब ज़मीन पर दुबका हुआ, साँस रोके सहस्त्रपाणि के अगले कदम का इंतज़ार कर रहा था।

सहस्त्रपाणि का चेहरा पूरी तरह काला पड़ गया। उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं।

"क्या?" उसने पूछा। "कैसे? किस सैनिक ने उसे हराया?"

जासूस अब पूरी तरह पसीने से लथपथ था। "महाराज... वह पिशाच शिकारी जिसका नाम आशय था! वह अचानक वहाँ आया और वज्रदंत की भुजा तोड़ दी... उसने छिपकर उस पर अनगिनत बाण चलाए और अंततः उसकी जान ले ली।"

सहस्त्रपाणि के चेहरे का कालापन और भी भयानक हो गया। उसके मुँह से जानवर जैसी गुर्राहट की आवाज़ निकली। उसने अपने सिंहासन की भुजा पर ज़ोर से प्रहार किया। धातु के सिंहासन का एक हिस्सा टूट गया, लेकिन उसे कोई परवाह नहीं थी। उसकी आँखों में आग की लपटों जैसा क्रोध जल रहा था।

"वज्रदंत, मेरा पराक्रमी योद्धा, क्या उसे किसी पिशाच शिकारी ने मार डाला?" वह चिल्लाया।

"यह कैसे हुआ? वज्रदंत तो अजेय था! उसे कोई हरा नहीं सकता था!"

जासूस अब पूरी तरह से भयभीत हो गया। उसने झुककर अदम्य स्वर में फिर से कहा।

"महाराज... आशय नाम का वह शिकारी अचानक वहाँ आ पहुँचा। वह सतर्क था, युद्ध की हर रणनीति में निपुण था। उसने वज्रदंत का दाहिना हाथ तोड़ दिया और उस पर छूपकर अनगिनत बाणों की वर्षा की... अंततः, उसने उसके प्राण ले लिए!"

जासूस की आवाज़ भारी हो गई। सहस्त्रपाणि के क्रोध का विचार ही उसके मन में भय पैदा कर रहा था। लेकिन सहस्त्रपाणि अब किसी और ही विचार में खोया हुआ था। उसका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था, लेकिन उस क्रोध के साथ-साथ उसके मन में एक अलग ही विचार उभरने लगा, अब न केवल राजवीर, बल्कि आशय और आर्या भी उसके मार्ग में एक बड़ी बाधा बन गए थे। और उनका सफाया करना अनिवार्य हो गया था!

सहस्त्रपाणि का माथा ठनका।

"मैं इसे खत्म कर दूँगा! मेरे राज्य में किसी को उसका नाम भी नहीं लेना चाहिए!" वह ज़ोर से चिल्लाया।

लेकिन अभी भी कुछ कहना बाकी था। जासूस अभी भी पूरी तरह से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था।

सहस्त्रपाणि ने उसकी आँखों में देखा और उत्तेजित स्वर में बोला, "और क्या कहना चाहते हो? बताओ! तुम्हें मेरी पूरी सुरक्षा है।"

जासूस का गला सूख गया। उसके मन में भय का तूफ़ान उमड़ रहा था। सहस्त्रपाणि की निगाहें उसे ऐसे देख रही थीं, मानो उसकी आत्मा तक पहुँच गई हों। उसने फ़िरसे अदम्य स्वर में कहा,

"महाराज... न केवल वज्रदंत, बल्कि सर्पकला भी मर गई है।" यह सुनकर सहस्त्रपाणि एक पल के लिए स्तब्ध रह गया। वह इतना क्रोधित था कि उसने अपने हाथ में पकड़ी हुई छड़ी ज़ोर से ज़मीन पर पटक दी।

"कैसे? किस नीच सैनिक ने उसे मार डाला?" उसकी आवाज़ अब पहले जैसी कठोर नहीं थी, लेकिन उस सन्नाटे में और भी भय था।

जासूस और भी काँपने लगा। "महाराज, वह आर्या को मारने गई थी... लेकिन जैसे ही उसकी तलवार की नोक आर्या के पेट से छूई, वह पिघल गई! उसका शरीर मोम की तरह पिघलकर काले तरल में बदल गया! उसे किसी ने नहीं मारा, महाराज... मानो उसका अपना ही अंत उसे निगल गया हो!"

जासूस को यह बताते हुए ही उसकी त्वचा में एक काँटा चुभ गया। सहस्त्रपाणि के चेहरे पर अब क्रोध की जगह एक अजीब, रहस्यमय विचार उभर आया। उसने सिंहासन के हत्थे को अपने नाखूनों से इतनी ज़ोर से पकड़ा कि कठोर धातु पर खरोंचें पड़ गईं।

"यह क्या नया खेल है?" वह मन ही मन बुदबुदाया। उसे पहले से ही आर्या के पेट में पल रही शक्ति का अंदाज़ा था, लेकिन अब उसे यकीन हो गया था। यह आर्या के पेट की शक्ति साधारण नहीं है... और इसीलिए उसे ज़िंदा छोड़ना ख़तरनाक हो सकता है!

सहस्त्रपाणि स्तब्ध रह गया। उसने अपने दोनों हाथ फैलाए, अपने पैरों पर खड़े होते हुए गहरी सोच में डूब गया। उसके चेहरे पर अब आश्चर्य और भय दोनों साफ़ दिखाई दे रहा था।

वह समझ गया कि अब हालात सामान्य नहीं रहे, एक बड़ा रहस्य जन्म लेने वाला था और यह उसके लिए डर का स्रोत होगा। आर्या अब कोई साधारण स्त्री नहीं थी। उसके गर्भ में पल रहा जीवन के पास कई ज़्यादा ताकते और रहस्यमयी ऊर्जा थी।

सहस्त्रपाणि का चेहरा भावशून्य हो गया, लेकिन उसकी आँखों में एक नई चमक आ गई। उसने जासूस को घूरा, उसकी गहरी निगाहों के नीचे वह और भी पतला लग रहा था।

"इसका मतलब है... आर्या के गर्भ का खून जाग गया है।" उसकी आवाज़ में अब एक भयावह शांति थी। जासूस ने अपना सिर नीचे कर लिया। वह अब पूरी तरह भीग चुका था।

"महाराज, वह शक्ति सामान्य नहीं है... वह किसी को भी नष्ट कर सकती है। उसके गर्भ में पल रहा उत्तराधिकारी हमारे अस्तित्व के लिए ख़तरा हो सकता है!" उसने काँपती आवाज़ में कहा।

सहस्त्रपाणि ने एक गहरी साँस ली और सिंहासन के पास रखी अपनी नागफनी तलवार उठाई। उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे उसके किनारों पर चलने लगीं।

"अगर वह पिशाच और मानव रक्त का उत्तराधिकारी है, तो उसे गर्भ में ही समाप्त होना होगा।" उसकी आँखों में अब एक क्रूर दृढ़ संकल्प था।

"अब आर्या ही नहीं, उस अजन्मी शक्ति का भी नाश होना चाहिए!" वह सिंहासन से उठा, चारों ओर के अँधेरे में एक लंबी परछाईं मंडरा रही थी।

"यह युद्ध अभी ख़त्म नहीं हुआ है। अब असली शुरुआत है!"

क्रमशः

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