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रक्तपिशाच का रक्तमणि ८८

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ८८

सहस्त्रपाणि सिंहासन पर पालथी मारकर बैठा था। उसके चेहरे पर बनावटी मुस्कान थी, लेकिन उसकी आँखों में बेचैनी साफ़ झलक रही थी। उसे पता था कि अब उसकी चालें तेज़ होनी चाहिए। वज्रदंत और सर्पकला दोनों हार चुके थे, राजवीर, आशय अभी भी जीवित थे, और अब उसके सामने एक नई चुनौती खड़ी हो चुकी थी, आर्या के गर्भ में पल रही अज्ञात शक्ति। उसने अपने विशेष सैनिकों को बुलाया।

सहस्त्रपाणि की आँखों में एक चमक थी। उसने अपने सिंहासन के सामने खड़े सैनिकों को घूरा।

"महाभूषण कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं," उसने दहाड़कर कहा।

"वह त्रिकाल ज्ञानी हैं। वह भूत, वर्तमान और भविष्य को जनता हैं। लेकिन मैंने तय किया है कि मुझे उसके इस ज्ञान का उपयोग करना चाहिए। मुझे यकीन है कि वह यहाँ अकेले नहीं आएगा। इसलिए उसे बुलाने में समय बर्बाद नहीं करना। अगर वह न मानें, तो उसे ज़बरदस्ती ले आओ। चाहे वह अपनी झोपड़ी में हों या अपने गाँव में, मेरा आदेश पूरा होना ही चाहिए!"

सैनिक एक-दूसरे की ओर देखने लगे। महाभूषण किसी राजा के दरबार में रहने वाले विद्वान नहीं थे, बल्कि अपने ही नियमों पर चलने वाले व्यक्ति थे। लेकिन सैनिको में से किसी में भी सहस्त्रपाणि के आदेश के विरुद्ध जाने का साहस नहीं था।

"महाराज, हम उसे शीघ्र ही आपके समक्ष प्रस्तुत करेंगे!" यह कहकर वे तुरंत चल पड़े। सहस्त्रपाणि ने अपने सिंहासन की भुजाओं को कसकर पकड़ लिया। वह जानता था कि महाभूषण आसानी से कुछ नहीं कहेगा, लेकिन उसके पास अब समय नहीं था। वह जल्द से जल्द जानना चाहता था, कि आर्या के पेट में कौन सी शक्ति पनप रही है।

महाभूषण केवल एक ज्योतिषी ही नहीं थे, कभी-कभी कहा जाता था कि उनमें भविष्य बताने और बदलने की भी शक्ति थी। कई राजा-महाराजा उनके ज्ञान से चकित थे। एक साधारण कुंडली या चेहरा देखकर, वह किसी भी व्यक्ति के पिछले कर्मों, वर्तमान संघर्षों और भविष्य की नियति का सटीक अनुमान लगा सकते थे। कुछ लोगों ने तो यह भी सुना था कि वह घटनाओं को घटित होने से रोक भी सकते है!

महाभूषण एक सादा, सात्विक जीवन जीते थे। वह किसी वैभव के पीछे नहीं भागते थे। शरीर पर सादे सफ़ेद वस्त्र, माथे पर चंदन का टीका और चेहरे पर एक अजीब सी शांति। उनकी आँखों में हमेशा एक चमक रहती थी, मानो उन्हें ब्रह्मांड का हर रहस्य मालूम हो।

महाभूषण एक निःस्वार्थ व्यक्ति थे। उनके मन में किसी भी ऐश्वर्य की कोई लालसा नहीं थी। उनके मस्तिष्क में न केवल ज्ञान था, बल्कि गहन अंतर्ज्ञान और अबूझ भावनाएँ भी थीं। उनकी आँखों में एक रहस्य था, मानो उन्हें इस ब्रह्मांड की हर चीज़ का ज्ञान हो। वे ज़्यादा बोलते नहीं थे, लेकिन एक बार बोलने के बाद, उनके शब्दों का गहरा अर्थ होता था। उनके अस्तित्व में ऐसा जादू था कि जो भी उनके सामने आता, अनजाने में ही उनके प्रभाव में आ जाता। वे किसी के प्रभाव में नहीं आते थे, बल्कि उनकी बुद्धि ऐसी थी कि लोग उनसे मार्गदर्शन लेते थे।

महाभूषण गाँव से दूर एक छोटी सी, पत्तों वाली झोपड़ी में अकेले रहते थे। उनकी झोपड़ी के आस-पास जानवर शांति से विचरण करते थे, हंस, मोर, हिरण, गाय किसी जाति या धर्म का कोई भेदभाव नहीं था। मनुष्य और पशु समान रूप से रहते थे। गाँव के कई लोग अपनी समस्याएँ लेकर वहाँ आते और उनके ज्ञान का लाभ उठाते। लेकिन वह अकेले कुटिया छोड़कर कहीं नहीं जाते थे।

उस रात सहस्त्रपाणि के सैनिक उनकी कुटिया पर आए। कुटिया के सामने मशालें जल उठीं। जैसे ही महाभूषण यह देखने के लिए बाहर आए कि कौन आया है, सैनिक गर्व से उनसे बातें करने लगे।

"महाभूषण, आप बहुत विद्वान हैं। हमारे पराक्रमी सहस्त्रपाणि राजा ने आपको बुलाया है। उन्हें आपके ज्ञान की आवश्यकता है!"

महाभूषण हल्के से मुस्कुराए।

"मैं कहीं नहीं जाता। जिन्हें सचमुच मेरी ज़रूरत होती है, वे खुद यहाँ आ जाते हैं। अगर सहस्त्रपाणि को मेरी ज़रूरत है, तो उसे खुद आना चाहिए। मैं उसके दरबार में नहीं जाऊँगा।"

सैनिकों ने एक-दूसरे की ओर देखा। वे पहले से ही जानते थे कि महाभूषण इतनी आसानी से नहीं आएंगे। इसलिए, अगले आदेश के अनुसार, उन्होंने उनके हाथ-पैर बेड़ियाँ डालकर उन्हें ऊपर उठा लिया। महाभूषण शांत थे। उनके चेहरे पर डर का ज़रा भी नामो निशान नहीं था।

"आप मुझे उठा सकते हैं, लेकिन मेरा ज्ञान ज़बरदस्ती नहीं छीन सकते," उन्होंने बस इतना ही कहा।

जैसे ही वे किले में पहुँचे, महाभूषण को सिंहासन के सामने खड़ा कर दिया गया। सहस्त्रपाणि उसे देखते ही अपने सिंहासन से उठा और मुस्कुराते हुए उसने पूछा,

"महाभूषण! आप महान त्रिकालज्ञ कहे जाते हैं! फिर भी, क्या आपको यह नहीं पता था कि भविष्य में आपके साथ क्या होने वाला है?"

महाभूषण चुपचाप खड़े रहे। उनकी आँखों में न कोई भय था, न कोई चिंता। उन्होंने अपने आस-पास खड़े सभी सैनिकों पर एक नज़र डाली और फिर सहस्त्रपाणि की आँखों पर अपनी नज़र गड़ा दी। सहस्त्रपाणि के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी, लेकिन महाभूषण के चेहरे पर एक रहस्यमय शांति थी। वे धीरे से मुस्कुराए और कोमल स्वर में बोले,

"राजन, भविष्य देखने और उसे टालने में बहुत अंतर है। जो अपरिहार्य है उसे टाला नहीं जा सकता। मुझे पहले से पता था कि तुम्हारे सैनिक मुझे बलपूर्वक यहाँ लाएँगे। लेकिन मैंने प्रतिरोध नहीं किया, क्योंकि जिसे सच्चा ज्ञान है उसे प्रतिरोध की आवश्यकता नहीं होती। स्वयं सोचो, तुम कितने भी शक्तिशाली क्यों न हो, तुम मेरे पास क्यों आए हो? तुम अपनी बुद्धि और बल से उत्तर क्यों नहीं खोज सके?"

सहस्त्रपाणि का चेहरा एक क्षण के लिए कठोर हो गया। वह महाभूषण से जवाब चाहता था, लेकिन खुद सवालों के जाल में फँसता जा रहा था। उसके आस-पास के सैनिक भी एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे, उन्हें एहसास हुआ कि महाभूषण कोई साधारण ज्योतिषी नहीं, बल्कि उससे कहीं ज़्यादा बड़ा और रहस्यमयी व्यक्ति था।

महाभूषण ने शांत स्वर में उत्तर दिया,

"मैंने अपने जीवन में ज्ञान और सेवा को बल और अहंकार से बढ़कर माना है। मैं लोगों की सेवा करता हूँ, और इसके लिए मैं कहीं भी जाने को तैयार हूँ। लेकिन मैं अपनी मर्ज़ी से नहीं आया, तुम मुझे यहाँ लाए हो । बताओ, इतने शक्तिशाली होते हुए भी तुम्हे मेरी ज़रूरत क्यों महसूस हुई?"

सहस्त्रपाणि सिंहासन पर विराजमान हुआ। उसके चेहरे पर एक कपटी मुस्कान थी।

"महाभूषण, मेरे लिए सब कुछ उल्टा है। नदी कभी प्यासे के पास नहीं जाती, लेकिन शक्ति का झरना ख़ुद मुझ तक पहुँच जाता है। मैं अपनी मर्ज़ी से हर कहीं जा सकता हु, मगर मैं अपनी मनचाही चीज़ें यहीं बुला लेता हूँ!"

महाभूषण रहस्यमय ढंग से मुस्कुराया।

"लेकिन कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जो अपने बस में नहीं होतीं, सहस्त्रपाणि। बताओ, तुमने मुझे क्यों बुलाया है?"

सहस्त्रपाणि थोड़ा गंभीर हो गया।

"मेरे राज्य में एक नई शक्ति का उदय हो रहा है। अगर वह मेरे नियंत्रण में रही, तो मैं दुनिया पर राज कर पाऊँगा। लेकिन अगर वह मेरे विरुद्ध गई, तो मेरा सब कुछ नष्ट हो जाएगा। मैं उस शक्ति के बारे में सब कुछ जानना चाहता हूँ। वह वास्तव में क्या है? उसका भविष्य क्या है? और अगर वह मेरे पास आ गई, तो मैं उसे कैसे नष्ट कर सकता हूँ?"

महाभूषण ने आँखें बंद कर लीं और एक क्षण मौन रहे। फिर उन्होंने आँखें खोलीं और अत्यंत रहस्यमय स्वर में उत्तर दिया,

"सहस्त्रपाणि, तुम एक ऐसी शक्ति के साथ खेल रहे हो जो इस ब्रह्मांड के नियमों से अलग है। वह तुम्हारे हाथ में आएगी या तुम्हें नष्ट कर देगी, यह तुम पर निर्भर है। लेकिन एक बात याद रखना, जब कोई चीज़ प्रकृति के विरुद्ध होती है, तो प्रकृति उसे किसीके गलत हात में नहीं पड़ने देती!"

सहस्त्रपाणि हँस पड़ा।

"तो तुम मेरे प्रश्नों का ठीक से उत्तर नहीं दोगे?"

महाभूषण चुप रहे। "तुम्हें उत्तर तो मिल जाएँगे, लेकिन तुम उसे पचा पाओगे या नहीं, यह तो समय ही बताएगा।"

महाभूषण की बात सुनकर सहस्त्रपाणि थोड़े असहज हुआ, लेकिन उसने अपनी बात छिपा ली। "ठीक है," उसने कहा,

"दो दिन और यहीं रुको, सोचो, और फिर मेरे सवालों के जवाब दो। मैं तुम्हें यहीं बंद कर दूँगा। जब तक मुझे मेरे सवालों के जवाब नहीं मिल जाते, तुम मेरे कारागार में ही रहोगे!"

महाभूषण केवल मुस्कुराए। "मैं तुम्हारा कैदी हूँ, लेकिन मेरा ज्ञान नहीं। यह याद रखना, सहस्रपाणि।"

सहस्रपाणि ने उसे तिरछी नज़र से देखा। अब वह महाभूषण के ज्ञान का उपयोग करके अपने मनचाहे जवाब ढूँढ़ना चाहता था, और इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकता था।

क्रमशः


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