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रक्तपिशाच का रक्तमणि ९०

एक रक्त पिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ९०

महाभूषण को सहस्त्रपाणि के किले में कड़ी सुरक्षा में रखा गया था। सैनिक लगातार उसके चारों ओर गश्त लगा रहे थे, क्योंकि वह गोपनीयता का एक महत्वपूर्ण स्तंभ था। हालाँकि, उसकी गिरफ्तारी की खबर राजवीर, आशय, बलदेव और आर्या तक पहुँच चुकी थी। वे सभी उसे ढूँढ़ने और किले से छुड़ाने के लिए निकलने ही वाले थे कि आर्या के पेट में मरोड़ उठने लगी, इसलिए वे चारों गाँव के वैद्य के पास गए।

यह जानने के लिए कि आर्या को इतनी जल्दी मरोड़ कैसे होने लगी, जबकि उसका अभी छठा महीना भी नहीं आया था। उन्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उनकी अनुपस्थिति में ख़तरे का साया उनके गाँव की ओर मंडरा रहा है। किले से निकले सहस्त्रपाणि के सैनिक गाँव की ओर बढ़ने लगे थे। उनका इरादा साफ़ था, राजवीर के घर में घुसकर रक्तमणि   की तलाश करना !

गाँव के द्वार पर पहुँचते ही उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि गाँव में किसी को शक न हो। उन्होंने अपनी वेशभूषा बदल ली थी ताकि गाँव में किसी को शक न हो। कुछ सैनिक साधारण किसानों के वेश में थे, तो कुछ व्यापारी बनकर गाँव में घूम रहे थे। राजवीर के घर पहुँचकर उन्होंने ध्यान से उसका निरीक्षण किया और मौका मिलते ही घर में घुस गए।

अंदर की हर चीज़ की जाँच की गई। अलमारियाँ, पुराने बोरे, ज़मीन में छिपी चीज़ें, हर जगह तलाशी शुरू हो गई। लेकिन रक्तमणि नहीं मिला। उन्होंने घर के पास एक पेड़ के नीचे भी खुदाई की, लेकिन वहाँ भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। अपने मकसद में नाकाम होने पर, उन्होंने एक अलग योजना सोची। अब वे गाँव में घूमकर और जानकारी जुटाएँगे, और सही मौका मिलते ही फिर से कार्रवाई करेंगे।

गाँव का वैद्य आर्या की नब्ज़ देख रहा था, उसके पेट में हो रहा दर्द सुन रहा था और उसकी हालत पर कड़ी नज़र रखे हुए था। कुछ देर सोचने के बाद, उसने धीमी आवाज़ में कहा, "आर्या, तुम्हारे गर्भ में भ्रूण अभी विकास की अवस्था में है, लेकिन उसे ज़रूरी पोषण नहीं मिल रहा है। इसलिए वह लगातार हिल रहा है, और इसी वजह से तुम्हें परेशानी हो रही है।" यह सुनकर आर्या का मन चिंता से भर गया।

उसने वैद्य से और जानकारी माँगी। वैद्य ने उसे समझाया कि अब उसे भरपूर पौष्टिक आहार, दूध, घी, फल खाने की ज़रूरत है, वरना गर्भस्थ शिशु और बेचैन हो जाएगा और उसका शरीर भी कमज़ोर हो जाएगा। आशय और बलदेव भी एक तरफ खड़े होकर ध्यान से सुन रहे थे। वैद्य ने आगे कहा,

"आर्या, तुम्हारे गर्भ में पल रहा बच्चा सिर्फ़ तुम पर निर्भर है। अगर तुम ठीक से खाओगी, तो वह भी मज़बूत होगा और तुम्हें कोई तकलीफ़ भी नहीं होगी।" बलदेव ने उसका साथ दिया और कहा,

"चिंता मत करो। हम तुम्हारे खान-पान का पूरा ध्यान रखेंगे।" आर्या ने अनजाने में ही अपने पेट पर हाथ रखा और अपने गर्भस्थ शिशु से बात करते हुए, अपना ज़्यादा ध्यान रखने का वादा किया।

जैसे ही राजवीर, आशय, बलदेव और आर्या घर लौटे, उन्हें दरवाज़े पर कुछ अलग सा एहसास हुआ। घर में अँधेरा था, लेकिन माहौल में एक अजीब सी बेचैनी थी। जब वे अंदर दाखिल हुए, तो सामने का नज़ारा देखकर दंग रह गए, घर का सामान बेतरतीब ढंग से बिखरा पड़ा था, अलमारी के दरवाज़े खुले थे, और कुछ पुरानी चीज़ें ज़मीन पर बिखरी पड़ी थीं।

उनकी गैरमौजूदगी में कोई घर में घुस आया था! आशय आगे बढ़ा और एक लकड़ी का बक्सा उठाया, वह खाली था। बलदेव ने कोने में पड़े कुछ फटे हुए दस्तावेज़ उठाए, लेकिन उनमें कुछ भी काम का नहीं था। आर्या के मन में डर घर करने लगा। "यह कौन कर रहा होगा?" उसने चिंतित स्वर में पूछा।

आशय ने असमंजस में पूछा, "लेकिन वे आख़िर क्या ढूँढ़ रहे थे?" राजवीर चुप रहा, गहरी सोच में डूबा रहा। उसे जवाब पता था, लेकिन उसने अपना अगला कदम सावधानी से उठाया। कुछ पल खामोशी में बीते, और फिर उसने धीमी आवाज़ में कहा,

"वे रक्तमणि ढूँढ़ रहे थे।" बलदेव और आशय ने एक-दूसरे को देखा। अब उन्हें स्थिति और भी भयावह लग रही थी।

अगर सहस्त्रपाणि के सैनिक या उनके साथी इतने गुप्त तरीके से घर में घुसकर रक्तमणि की तलाश कर रहे थे, तो इसका मतलब था कि उन्हें कहीं से खबर मिली होगी कि राजवीर ने रक्तमणि वहाँ छिपा दिया है, लेकिन वे उसे घर में कभी नहीं ढूँढ़ पाते, क्योंकि वह यहाँ था ही नहीं! राजवीर ने गहरी साँस ली, आशय की ओर देखा और उसे एक कोने में ले जाकर फुसफुसाया,

"मैंने सहस्त्रपाणि के किले में ही रक्तमणि छिपा दिया है। जब तक रक्तमणि वहाँ है, वो उसे कभी नहीं ढूंढ पाएंगे।"

सहस्त्रपाणि अपने किले में रक्तमणि छिपाने के बारे में सोच भी नहीं सकता था। उसका पूरा ध्यान हमेशा दूसरों पर रहता था।गाँव पर, राजवीर की गतिविधियों पर, और इस बात पर कि कहीं रक्तमणि उसने घरपर तो नहीं छुपा रखा है, लेकिन उसे अपने निवास पर कभी शक नहीं होता था। किला उसका साम्राज्य था, एक सुरक्षित और अभेद्य जगह। उसके अनुसार, कोई भी उसके किले में घुसकर कुछ भी छिपाने की हिम्मत नहीं कर सकता था। इसीलिए राजवीर ने रक्तमणि को उसके  किले में रख दिया है। वह वहाँ पूरी तरह सुरक्षित था, क्योंकि सहस्त्रपाणि और उसके सैनिक रक्तमणि की तलाश में बाहरी दुनिया में घूमते रहेंगे। उन्हें यह कभीभी नहीं लगेगा कि वह किले में ही छिपा है।

आशय स्तब्ध रह गया। राजवीर ने एकदम सही खेल खेला था।

लेकिन राजवीर को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि कोई उसकी हर बात सुन रहा है। अँधेरी रात में, उनके घर की छत पर एक काली आकृति चुपचाप साये की तरह बैठी थी। यह एक भयानक, रूप बदलने वाला पिशाच था! उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी जो अँधेरे में भी चमक रही थी, वह राजवीर की हर बात पर नज़र रख रहा था।

यह पिशाच किसी भी इंसान, जानवर या पक्षी का रूप ले सकता था, और वह सहस्त्रपाणि के कहने पर इस गुप्त मिशन पर आया था। उसका मुख्य काम रक्तमणि का पता लगाना और सहस्त्रपाणि को सूचित करना था। एक पल के लिए वह चुपचाप बैठा सुनता रहा, और जैसे ही उसे रक्तमणि की असली जानकारी मिली, वह सावधानी से आगे बढ़ा। अगले ही पल, उसने छलांग लगाई और एक विशाल चमगादड़ का रूप धारण करते हुए घर की छत से उड़ गया।

आशय ने एक जानी-पहचानी आवाज़ सुनी, लग रहा था कि वह कहीं से तेज़ रफ़्तार से आ रही है। कोई अनजान, लेकिन खतरनाक हरकत उसकी इंद्रियों को सचेत कर रही थी। वह सतर्क हो गया, जल्दी से खिड़की के पास गया और बाहर देखा। अँधेरे में एक काली परछाई उड़ रही थी। पहले तो उसने सोचा कि यह कोई साधारण चमगादड़ होगा, लेकिन फिर उसके दिमाग में एक विचार कौंधा, यह कोई पिशाच है जो रूपांतरित हो सकता है! उसके दिल में डर की लहर दौड़ गई, लेकिन उसने खुद को नियंत्रित किया। कुछ क्षण पहले उसने राजवीर को रक्तमणि के बारे में बात करते सुना था, और अब अचानक यह अनजान प्राणी उनके घर से बाहर जा रहा था। मतलब साफ़ था, यह सहस्त्रपाणि का जासूस था!

बिना एक पल की हिचकिचाहट के, आशय ने धनुष को अपने पास उठा लिया। एक तेज़ गति से, उसने डोरी खींची और उस अजीब उड़ते हुए प्राणी की ओर एक सटीक बाण छोड़ा। बाण तेज़ी से हवा में उछला, लेकिन तब तक चमगादड़ तेज़ी से आगे बढ़ चुका था। उसने दूर एक पेड़ की टहनी को छुआ और कुछ पलों के लिए उसकी गति धीमी हुई, लेकिन वह तुरंत अँधेरे में गायब हो गया।

आशय के चेहरे पर गुस्से की एक परछाईं उभर आई। वह महत्वपूर्ण जानकारी लेकर किले की तरफ भाग गया था। अब समय बीत रहा था। अगर राजवीर गाँव में ही रुक जाता, तो सहस्त्रपाणि किले में रक्तमणि की तलाश शुरू कर देता। राजवीर, बलदेव और आर्या को यह खबर तुरंत देना ज़रूरी था, क्योंकि अब उन्हें युद्ध के लिए तैयार होना पड़ने वाला था!

अब यह साफ़ था कि सहस्त्रपाणि को किले में रक्तमणि की सूचना मिल चुकी थी। तो अब यह तय था कि सहस्त्रपाणि उसे ढूँढ़ने के लिए वहाँ चल पड़ेंगा।

राजवीर, आशय, बलदेव और आर्या अब जल्दी-जल्दी सोचने लगे। अब उन्हें क्या करना चाहिए? क्या रक्तमणि सुरक्षित रहेगा, या उसकी खोज गाँव के लिए और मुसीबतें लाएगी?

इस जवाब के लिए उन्हें किले की ओर वापस कूच करना था...

क्रमशः

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