भाग ९३
किले के दरबार में सिंहासन के पीछे छिपा एक छेद अब सबके सामने आ गया था। उसके अंदर ज्वालामुखी के लाल लावा जैसा एक चमकता हुआ रक्तमणि चमक रहा था। सैनिकों ने उसे ढूँढ़ा, लेकिन उसे पाने की खुशी क्षणिक थी। क्योंकि जब एक सैनिक ने रक्तमणि को छूने की कोशिश की, तो रक्तमणि से एक तेज़ चमकीली बिजली ज़मीन पर गिर पड़ी। वह चीख़ते हुए पीछे हट गया, उसका पूरा शरीर कटने लगा, और कुछ ही पलों में वह बेहोश हो गया।
बाकी सैनिक यह दृश्य देखकर स्तब्ध रह गए। उस सैनिक का हाथ काला पड़ गया था, मानो बुरी तरह जल गया हो। अब किसी में भी रक्तमणि को छूने की हिम्मत नहीं थी। सभी सैनिक एक-दूसरे को असमंजस भरी नज़रों से देखने लगे। रक्तमणि की लाल चमक ने सिंहासन के पीछे की दीवार पर एक अजीब सी परछाई बना दी थी। उस जगह एक रहस्यमयी शक्ति थी, जो किसी को भी उस रक्तमणि को छूने नहीं दे रही थी।
"यह आसान नहीं है," एक सैनिक ने डरते हुए कहा। "अगर रक्तमणि को छूने वाला हर कोई इस तरह डर जाएगा, तो हम उसे कैसे बाहर निकालेंगे?"
"इसका मतलब यह नहीं कि यह कोई असाधारण रत्न है। इस पर कुछ रहस्यमयी मंत्र हैं," दूसरे सैनिक ने अनुमान लगाया।
"हमें अभी गुरुदेव को बुलाना चाहिए। केवल उनकी शक्ति से ही हम इस श्राप को दूर कर सकते हैं," तीसरे सैनिक ने जल्दी से सुझाव दिया।
सैनिकों के फुसफुसाते ही, एक बहादुर सैनिक ने निर्णय लिया। "महाराज सहस्त्रपाणि को यह जानकारी तुरंत बतानी चाहिए!"
वह तुरंत किले के मुख्य भवन की ओर दौड़ा। वहाँ सहस्त्रपाणि अपने शिष्यों और सरदारों के साथ बैठे थे। भवन में एक गंभीर चर्चा चल रही थी, क्योंकि वह अभी भी इस बात को लेकर बेचैन थे कि रक्तमणि मिलेगा या नहीं।
"महाराज!" सैनिक ने साँस लेते हुए जल्दी से कहा। "हमें रक्तमणि मिल गया है!"
सहस्त्रपाणि की आँखों में एक चमक आ गई। उसने तुरंत पूछा, "वह कहाँ है?"
"महाराज, आपके सिंहासन के पीछे एक कपाट था, उसके अंदर उसे रखा गया था। लेकिन... लेकिन हम उसे छू नहीं सकते थे!" सैनिक ने डरते हुए कहा।
सहस्त्रपाणि एक पल के लिए स्तब्ध रह गया।
"इसे छू नहीं सकते? इसका क्या मतलब है?" उसकी आवाज़ और भी कठोर हो गई।
सैनिक ने बीती हुई घटना को एक बार फिर सुनाया।
"महाराज, हमारे एक सैनिक ने रक्तमणि को छूने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही उसने हाथ बढ़ाया, उसे ज़ोर का बिजली का झटका लगा। वह वहीं बेहोश हो गया। हम उसे अभी तक होश में नहीं ला पाए हैं। और अब कोई भी उस रक्तमणि के पास जाने की हिम्मत नहीं कर रहा।"
यह सुनकर सहस्त्रपाणि का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
"तो हमें किले में रक्तमणि तो मिल गया, लेकिन हम उसे छू नहीं सकते? यह कौन सी नई मुसीबत है?" वह ज़ोर से दहाड़ा।
उसके सामने बैठे शिष्य और सरदार भी असमंजस में थे। बगल में खड़ा गुप्तचर वक्रसेन भी सोच में डूबा हुआ था।
"महाराज, मतलब साफ़ है। सिर्फ़ एक ख़ास व्यक्ति ही रक्तमणि उठा सकता है। शायद उस योद्धा को कोई गुप्त उपाय पता हो। अगर वह अपने किले में आकर रक्तमणि रख सकता है, तो ज़रूर उसने उस पर कोई जादू किया होगा।"
सहस्त्रपाणि ने कुछ देर तक अपने अनुमान पर विचार किया। फिर उसने एक सरदार की ओर देखा और आदेश दिया,
"उस बेहोश सैनिक को यहाँ लाओ। उसकी हालत देखकर हम आगे क्या करना है, यह तय करेंगे।"
जल्द ही, कुछ सैनिकों ने बेहोश सैनिक को उठाया और उसे कक्ष में ले आए। उसका शरीर अभी भी सुन्न था, और उसके हाथों पर काले घाव उभर आए थे। शिष्य उसे देखते हुए फुसफुसाने लगे।
जैसे ही सैनिक को अंदर लाया गया, कक्ष का माहौल और भी गंभीर हो गया। वह अभी भी बेहोश था और उसकी साँसें धीमी चल रही थीं। उसका शरीर भारी लग रहा था, मानो किसी अदृश्य शक्ति ने उसकी सारी ऊर्जा सोख ली हो। कक्ष में मशालों की रोशनी में उसका काला पड़ा हाथ भयानक लग रहा था।
कुछ शिष्यों ने उसे छूकर जगाने की कोशिश की, लेकिन उसके शरीर से अभी भी एक तरह की नकारात्मक ऊर्जा निकल रही थी। सैनिकों के दिलों में डर फैल गया, अगर रक्तमणि से छुआ हुआ व्यक्ति ऐसी हालत में हो, तो उस मणि को उठाना भी खतरनाक होगा, उसके और करीब जाना तो दूर की बात है!
सहस्त्रपाणि उसे रहस्यमयी नज़रों से देख रहा था। उसने अपने एक शिष्य को आदेश दिया,
"देखो, कहीं इसके हाथ पर कोई जादू तो नहीं चल रहा है।" शिष्य ने कुछ देर हाथ जोड़े और कुछ रहस्यमय मंत्र बुदबुदाए, और अचानक उसके मुँह से एक गंभीर स्वर निकला,
"महाराज, इसकी रक्षा किसी उच्च शक्ति द्वारा की जा रही है। यह सिर्फ़ बिजली का झटका नहीं था, बल्कि इसके पीछे कोई श्राप भी ज़रूर होगा। अगर इस सैनिक का तुरंत इलाज नहीं किया गया, तो यह हमेशा के लिए अपाहिज हो जाएगा!"
यह सुनकर सभा में फुसफुसाहट शुरू हो गई। सभी लोग रक्तमणि की अकल्पनीय शक्ति के बारे में सोचने लगे। सहस्त्रपाणि के मन में अब बस एक ही विचार था, राजवीर ने आख़िर किस उद्देश्य से यह मंत्र जाप किया होगा और क्या उसे इसे तोड़ने का तरीका पता होगा?
सहस्त्रपाणि अब सोच रहा था। "अगर राजवीर ने यह मंत्र जाप किया है, तो उसे इसे तोड़ने की कला भी आनी चाहिए। हमें उसे पकड़ना होगा।"
वक्रसेन ने अपने सिर पर हाथ फेरते हुए सुझाव दिया, "महाराज, हमें राजवीर को पकड़ने से पहले उसके मन में भय पैदा करना चाहिए। उसे यह सोचने के लिए मजबूर करना चाहिए कि हम उस पर अगला बड़ा हमला करने वाले हैं। उसे यह सोचना चाहिए कि उसकी योजना विफल हो गई है और फिर वह ख़ुद ही यह मंत्र जाप करने की कोशिश करेगा।"
सहस्त्रपाणि रहस्यमय ढंग से मुस्कुराया। "तो हम ऐसा ही करेंगे। कल सुबह गाँव पर हमले की अफवाह फैला दो। राजवीर और उसके साथियों को मजबूरन किले में आना होगा।"
यह सुनकर कक्ष में बैठे सभी लोग चुपके से हँस पड़े। वक्रसेन ने तुरंत कुछ जासूसों को बुलाया और उन्हें गाँव में यह अफवाह फैलाने का आदेश दिया।
"अब देखते हैं, राजवीर इस अफवा को कब तक झेल पाता है," सहस्त्रपाणि सिंहासन पर झुककर अपनी उंगलियाँ आपस में थपथपाते हुए मन ही मन बुदबुदाया।
सहस्त्रपाणि रक्तमणि की शक्ति प्राप्त करने के लिए उत्सुक था, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि रक्तमणि किसी की इच्छा का पालन नहीं करता। यह कोई साधारण मणि नहीं था, यह एक जीवित ऊर्जा थी, जिसे खुदकी बुद्धि और चुनाव करने की शक्ति थी। रक्तमणि ने स्वयं अपना स्वामी चुना था, और केवल वह स्वामी अगर इसे किसी और को सौंपने को तैयार होता है फिर ही यह किसी और के हाथों में जा सकता है।
वरना, जो कोई भी इसे जबरदस्ती हथियाने की कोशिश करता, उसे इसकी विनाशकारी शक्ति का सामना करना पड़ता। सहस्त्रपाणि को अभी तक यह समझ नहीं आया था। उसके मन में बस एक ही विचार था, अगर रक्तमणि उसके हाथ लग जाए, तो वह पूरे साम्राज्य पर राज कर सकेगा।
क्रमशः
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