भाग ९४
गाँव में अँधेरा था, लेकिन उस अँधेरे में कुछ अजीब चेहरे छिपे थे। सहस्त्रपाणि के जासूस अलग-अलग वेश में गाँव में फैले हुए थे, कुछ दरवेशों के वेश में, कुछ लामाओं के, और कुछ साधुओं के। उनमें से एक ज्योतिषी का वेश धारण किए गाँव में घूम रहा था, गाँववालों से बातें कर रहा था और एक ही अफवाह फैला रहा था।
"सहस्त्रपाणि नाम का एक भयानक राक्षस गाँव पर हमला करने वाला है। उसे एक खास चीज़ चाहिए, और वह गाँव में सिर्फ़ एक पिशाच के पास है। अगर वह उसे नहीं देगा, तो अगले दिन गाँव का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। पूरा गाँव जलकर राख हो जाएगा!" इस भयानक भविष्यवाणी ने गाँववालों में भारी भय फैला दिया।
गाँव के चौक में एक बड़ी भीड़ जमा हो गई थी। बीच में, एक लंबा, सफ़ेद दाढ़ी वाला, फटे-पुराने वस्त्र पहने दरवेश एक पत्थर पर खड़ा होकर ज़ोर-ज़ोर से बातें कर रहा था। उसकी आँखें चमक रही थीं, और वह बहुत गंभीर स्वर में गाँववालों को कुछ बता रहा था। आसपास जमा लोग फुसफुसा रहे थे।
दरवेश (आसमान की ओर हाथ उठाते हुए): "सुनो! सुनो! समय आ गया है, क़ानून बदलने वाला है! अँधेरी शक्तियों का स्वामी, जिसका नाम लेने की भी कोई हिम्मत नहीं करता, स्वयं इस गाँव में आ रहा है!"
ग्रामीण डर के मारे एक-दूसरे को देखने लगे। कुछ धीरे-धीरे पीछे हटने लगे।
पहला ग्रामीण (काँपती आवाज़ में): "लेकिन... कौन? कौन आ रहा है? आख़िर तुम किसे चेतावनी दे रहे हो?"
दरवेश (नाटकीय लहजे में, अपनी आवाज़ धीमी रखते हुए): "वह है... सहस्त्रपाणि!"
दरवेश की बातें सुनकर कुछ ग्रामीणों के शरीर में झुनझुनी सी हुई। कुछ भगवान का नाम लेने लगे।
दूसरा ग्रामीण (डरते हुए स्वर में): "सहस्त्रपाणि? वह यहाँ क्यों आएगा? हमारा गाँव छोटा है! हमने उसका क्या बिगाड़ा है?"
दरवेश (गंभीरता से आँखें बंद करते हुए): "क्योंकि इस गाँव में एक चीज़ है... एक चीज़ जो उसे चाहिए। वह उसके लिए अनमोल है, उसके बिना उसका मकसद पूरा नहीं होगा। और अगर उसे वह नहीं मिली, तो..."
तीसरा गाँववासी (उत्सुकता से पूछते हुए): "तो...तो...क्या होगा?"
दरवेश (धमकी भरे अंदाज़ में हँसते हुए): "तो कल का सूर्योदय इस गाँव के लिए आखिरी होगा! यह पूरा गाँव जलकर राख हो जाएगा!"
गाँव में कोहराम मच गया। कुछ गाँववासी विलाप करने लगे, जबकि कुछ जल्दी-जल्दी अपने घर बंद करने लगे।
चौथा गाँववासी (गंभीर स्वर में): "ऐसा नहीं हो सकता! कोई तो रास्ता होगा! हम क्या कर सकते हैं?"
दरवेश (सिर झुकाकर, मानो एक पल के लिए सोच रहा हो): "एक रास्ता है... लेकिन मुश्किल है। अगर तुम उस चीज़ के मालिक का पता लगा सको और उसे मना सको, तो शायद वह उसे सहस्त्रपाणि को दे दे, और गाँव सुरक्षित हो जाएगा..."
गाँववाले एक-दूसरे को शक की निगाहों से देखने लगे, सोच रहे थे कि उस आदमी को कैसे ढूँढा जाए।
पहला गाँववाला (सावधानी से): "लेकिन... वह चीज़ किसके पास है? और उसमें है क्या?"
दरवेश (रहस्यमय ढंग से मुस्कुराते हुए): "पता नहीं। लेकिन तुम्हें उसे ढूँढना होगा... जितनी जल्दी हो सके! तुम्हारे पास सिर्फ़ आज की रात है।"
एक और गाँववाला (डरते हुए पूछते हुए): "और अगर हमें वह चीज़ और उसका मालिक नहीं मिला, तो?"
दरवेश (ऐसे स्वर में जो फुसफुसाहट जैसा सुनाई दे रहा था): "तो फिर तुम और तुम्हारा गाँव इतिहास के पन्नों में एक खोए हुए गाँव के रूप में दर्ज हो जाओगे... जहाँ कभी साधारण लोग रहते थे, लेकिन एक ही रात में सब कुछ नष्ट हो गया!"
गाँववाले और भी ज़्यादा डर गए। कुछ लोग तो दरवेश के पैरों में गिर पड़े और पूछा कि क्या कोई आसान उपाय है।
तीसरा ग्रामीण (अपने होश में आते हुए): "कृपया! मुझे कोई रास्ता बताओ! हमें बचाओ!"
दरवेश (गंभीरता से): "रास्ता तुम्हारे हाथ में है... उस व्यक्ति को ढूँढ़ो!" "अगर वह समय रहते यह फैसला ले लेता है, तभी तुम्हारा गाँव बच पाएगा!"
ग्रामीण और भी उलझन में थे। वह वस्तु किसके पास है? क्या सचमुच गाँव में कोई पिशाच है? आगे क्या होगा? यह तो समय ही बताएगा? सब इस बारे में सोचने लगे।
"क्या यह सच हो सकता है?" एक बूढ़े व्यक्ति ने चिंतित होकर पूछा।
"पता नहीं। हम पहले ही भेड़ियों के एक भयानक हमले से बच चुके हैं, और अब यह नया संकट।" एक और ग्रामीण ने कहा।
"लेकिन... अगर गाँव में कोई पिशाच है, तो वह कौन है? हमें किस पर शक करना चाहिए?" एक युवक ने डरते हुए पूछा।
"हो सकता है बाहर से आए यात्री हों... वे ही पिशाच हों!" किसी ने फुसफुसाया।
राजवीर के घर कई मेहमान आए हैं, अगर वह उनमें से कोई है, तो हमें उन पर नज़र रखनी चाहिए।
अफ़वाहें फैलने लगीं। गाँव वालों के मन में शक और घबराहट फैलने लगा।
घने जंगल के अंदर, एक सुनसान जगह पर, राजवीर, आशय, बलदेव और उनके बाकी साथी इकट्ठा हो गए थे। पेड़ों की काली परछाइयों ने उनके चेहरों पर और भी गंभीर छाया डाल दी थी। सहस्त्रपाणि को रक्तमणि मिल गया होगा! यह संभावना अब लगभग स्पष्ट हो गई थी। राजवीर का मन विचारों से भर गया था।
उसने पूरे विश्वास के साथ रक्तमणि के लिए सुरक्षित जगह तय कर ली थी, लेकिन उसने देखा था कोई उनकी गुप्त बातचीत सुन रहा था! आशय को अँधेरे में चमकती हुई वह आकृति याद आ गई, जो चमगादड़ लग रही थी, पर असल में वक्रसेन था। यह छोटी सी भूल अब उन्हें बहुत भारी पड़ने वाली थी। अगर रक्तमणि सहस्त्रपाणि के हाथ लग जाता है, तो उसे अब रोकना नामुमकिन हो जायेगा।
राजवीर ने सोचा, अगर उसे रक्तमणि मिल ही गया होता, तो अब उसे मेरी क्या ज़रूरत पड़ती?
इस पर आशय ने गंभीर स्वर में कहा,
"रक्तमणि खुद अपना मालिक चुनता है। जो उसे सबसे पहले छूता है, वही उसका असली मालिक होता है। जब तक सच्चा मालिक खुद उसे किसी और को न दे, वह किसी के हाथ में नहीं रहता। याद है? रक्तमणि को सबसे पहले तुमने ही अपने हाथ में लिया था। यानी, वह तुम्हारा है। तुम ही इसके असली मालिक हो।"
बलदेव के मन में अचानक विचारों का सैलाब उमड़ पड़ा। उसने राजवीर की ओर तेज़ी से देखा और दृढ़ स्वर में कहा,
"इसका सीधा सा मतलब है कि सहस्रपपणि को रक्तमणि मिलने के बावजूद, वह उसका उपयोग नहीं कर पायेगा ! उसे वह परम तत्व प्राप्त नहीं हुआ है जिसकी उसे चाहत है!" राजवीर, आशय और बाकी लोग भी एक पल के लिए स्तब्ध रह गए। बलदेव ने आगे कहा,
"वह इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं है। इसीलिए उसने गाँव पर हमला करने की योजना बनाई होगी! वह जानता है कि अगर वह तुम्हारी भावनाओं का फायदा उठाएगा, तो तुम्हें आसानी से अपने वश में कर सकता है। अगर वह गाँव वालों को बंधक बना ले, उन्हें जान से मारने की धमकी दे, तो तुम अपने लोगों को बचाने के लिए उसके सामने रक्तमणि को सहर्ष उपहार में लौटा दोगे।"
बलदेव की आवाज़ अब चिंता से भरी हुई थी।
"एक बार वह तुमसे रक्तमणि स्वीकार कर ले, तो फिर उसे कोई नहीं रोक पाएगा, न हम, न यह पूरी दुनिया! फिर तो सहस्त्रपाणि ही इस धरती पर राज करेगा!" उसकी भयानक भविष्यवाणी ने सबके दिलों को भारी कर दिया। समय निकलता जा रहा था। उन्हें तुरंत कुछ करना था।
राजवीर के मन में विचारों का तूफ़ान उठा। उसकी आँखों में अब दृढ़ संकल्प की चिंगारी चमक रही थी। उसने गहरी आवाज़ में कहा,
"अगर यह सच है, तो हम एक पल भी बर्बाद नहीं कर सकते। सहस्त्रपाणि को हमारी योजना का अंदाज़ा लगने से पहले ही हमें कार्रवाई करनी होगी। अब इस गाँव में रहना सुरक्षित नहीं है, यहाँ के निर्दोष लोगों को हमारी लड़ाई में घसीटना अन्याय होगा। अगर वह उन्हें बंधक बनाने की कोशिश करेगा, तो हम एक बड़ा मौका गँवा देंगे। हमें उससे पहले किले तक पहुँचना होगा।"
वह थोड़ा आगे बढ़ा और बोला, "यह अंतिम युद्ध अब अपरिहार्य है। अगर हम सहस्त्रपाणि को रोकना चाहते हैं, तो हमें उस पर हमला करने की तैयारी करनी होगी। हमारा एकमात्र रास्ता किले तक पहुँचना और उसकी शक्ति का स्रोत खत्म करना है। हमें यहाँ से निकलना होगा, और वह भी तुरंत!"
"हाँ," आशय ने सिर हिलाया, "हम समय बर्बाद नहीं कर सकते। मुझे अपने दूसरे पिशाच शिकारियों को बुलाना है। अब इस युद्ध को समाप्त करना होगा। इस ब्रह्मांड को सहस्त्रपाणि के साये से दुनिया को मुक्त करने का समय आ गया है!"
राजवीर और बलदेव के दृढ़ संकल्प ने सभी के मन में एक नई आशा भर दी। हर कोई इस महान और भयानक संघर्ष के लिए तैयार हो रहा था।
क्रमशः
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