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रक्तपिशाच का रक्तमणि ९५

एक रक्त पिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ९५

गाँव के पास घने जंगल में एक रहस्यमयी सन्नाटा छाया हुआ था। रात के अँधेरे में, चाँदनी की हल्की चमक में, आशय एक बड़े पेड़ के नीचे खड़ा अपने साथियों का इंतज़ार कर रहा था। कुछ ही देर में, जंगल की अलग-अलग दिशाओं से कुछ काली आकृतियाँ आने लगीं। वे पिशाच शिकारी थे, शत्रु की छाया में हमेशा मौत का सामना करते हुए, योद्धा।

आशय ने चारों ओर देखा। उस अँधेरी रात में भी, उसकी पैनी नज़रों ने हलचल पकड़ ली। पेड़ों की शाखाओं के बीच से परछाइयाँ तेज़ी से गुज़र रही थीं। कुछ ही पलों में, अलग-अलग दिशाओं से योद्धा उसके सामने आ खड़े हुए। वे साधारण सैनिक नहीं थे, वे पिशाच शिकारी थे, जो रात के अँधेरे में, शैतान के साथ खेलते हुए, चलते थे। उनके कपड़े खून से सने हुए थे, उनके चेहरों पर कोई चिंता नहीं, बस संकल्प था। उनकी पीठ पर लगे भेदी हथियार चाँदनी में चमक रहे थे।

मशालों की रोशनी परछाइयों को और बढ़ा रही थी। आशय और उसके साथी ’पिशाच शिकारी’ एक बड़े पेड़ के नीचे इकट्ठा हो गए थे। उनके चेहरों पर थोड़ी लालसा, थोड़ा गुस्सा और पूरा दृढ़ संकल्प झलक रहा था।

सभी शिकारी इकट्ठा हुए। हर किसी की कमर में आशय की तरह धारदार हथियार थे, चमकती तलवारें, चांदनी में चमकते चाकू, और एक खास धातु से बने तीखे तीर, जो सिर्फ़ राक्षसों का नाश करने के लिए बनाए गए थे। आशय ने सबकी तरफ़ देखा और कहा,

“मेरे दोस्तों, अब तक हमने कई भयानक जीवों को मारा है, राक्षसों का नाश किया है, लेकिन अब हमारे सामने जो दुश्मन है, वो अलग है। ये सिर्फ़ एक इंसान नहीं, बल्कि एक महाशक्ति है, सहस्त्रपाणि! ये सिर्फ़ मेरा दुश्मन नहीं, हम सबका दुश्मन है। इसने हमारी धरती पर अराजकता फैला दी है, निर्दोष लोगों को मार डाला है, और अब ये एक नई महाशक्ति की तलाश में है।”

कर्ण: (हाथ में खंजर लहराते हुए) “आशय, हम यहाँ आ गए हैं। लेकिन बताओ, आगे क्या? सहस्त्रपाणि कोई साधारण दुश्मन नहीं है। इसका सामना करने का मतलब है मौत के दरवाज़े पर चलना।”

वरुण: (अपने बाणों का तरकश कंधे पर रखते हुए) "कर्ण ठीक कह रहा है। हमने अब तक कई राक्षसों का सामना किया है, लेकिन सहस्त्रपाणि कुछ अलग है। उसके पास महाशक्तियाँ हैं। क्या तुम्हें यकीन है कि हम उसे हरा सकते हैं?"

आशय: (गंभीर स्वर में) "सच कहूँ तो... मेरे पास यकीन से भी ज़्यादा है, समझ और सच्चाई। सहस्त्रपाणि सिर्फ़ शक्तिशाली ही नहीं, भयानक भी है। लेकिन उसकी एक कमज़ोरी भी है, और हमें उसे पहचानना होगा।"

रुद्र: (हँसते हुए) "कमज़ोरी? और तुम्हें पता है? यह तो कमाल है!"

आशय: (आँखें घुमाते हुए) "हाँ, है। और वह अपनी ही वासना में है। वह शक्ति के पीछे भाग रहा है, लेकिन उसे कभी संतुष्टि नहीं मिलेगी। उसने अब रक्तमणि प्राप्त कर लिया है, और वह इसका इस्तेमाल कुछ भयानक करने के लिए करने वाला है।"

वरुण: (आँखें चौड़ी करते हुए) "रक्तमणि! मतलब... आखिरकार उसने इसे हासिल कर ही गया? अगर वो इसका इस्तेमाल करेगा, तो..."

कर्ण: (मन ही मन) "तो ये पूरा इलाका तबाह हो जाएगा!"

आशय: "इसीलिए तो मैंने तुम्हें बुलाया है। ये लड़ाई हमारे लिए सिर्फ़ एक अभियान नहीं, बल्कि अस्तित्व का सवाल है। अगर सहस्त्रपाणि रक्तमणि की शक्ति का सही इस्तेमाल करने लगे, तो राक्षसों को कोई नहीं रोक पाएगा। न तुम, न मैं, न कोई जीवित इंसान।"

रुद्र: (मुट्ठियाँ भींचते हुए) "तो हमें कुछ करना होगा। लेकिन... क्या तुम्हें ठीक से पता है कि सहस्त्रपाणि कहाँ है?"

आशय: (राजवीर की ओर इशारा करते हुए) "हाँ। एक किले में उसकी स्थिति तय है। राजवीर अभी-अभी वहाँ से लौटा है। उसकी जानकारी के अनुसार, वो रास्ता हमें यहाँ से वहाँ ज़रूर ले जा सकता है। वहाँ पहुँचना आसान नहीं है, लेकिन नामुमकिन भी नहीं है।"

कर्ण: (गंभीर होते हुए) "तो तुम्हारी योजना क्या है? क्या हम सीधे किले पर हमला करेंगे या पहले वहाँ से खुफिया जानकारी इकट्ठा करेंगे?"

आशय: "सबसे पहले, हमें सतर्क रहना होगा। हमें सहस्त्रपाणि की गतिविधियों पर नज़र रखनी होगी। हमें यह समझना होगा कि वह रक्त मणिका का उपयोग करने के कितने करीब है। जैसे ही हमें पता चलेगा कि वह कमज़ोर है, हम उस पर घातक प्रहार करेंगे।"

वरुण: "और अगर उसने रक्तमणि का उपयोग शुरू कर दिया होगा तो?"

आशय: (गंभीर) "तो हमें उसे रोकना होगा... किसी भी कीमत पर!"

एक क्षण के लिए, जंगल में एक बेचैनी भरा सन्नाटा छा गया। हर शिकारी ने अपने हथियार सामने लिए। यह युद्ध उनके अस्तित्व की लड़ाई थी। अब पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं था। सभी शिकारी एक-दूसरे की ओर देखने लगे। एक क्षण सोचने के बाद, सबने एक साथ सिर हिलाया। अब उनकी आँखों में बस एक ही चीज़ थी, युद्ध की तैयारी।

किले के अंदर, सहस्त्रपाणि सिंहासन के पास पहुंचा। उसके पीछे कुछ वफ़ादार सैनिक सावधानी से खड़े थे। लेकिन उसके मन में बस एक ही बात थी, सिंहासन के पीछे रखी रक्तमणि।

वह धीरे-धीरे उस दिव्य शिला के पास पहुंचा। रक्तमणि से एक हल्की लालिमा सी रोशनी निकल रही थी, मानो वह जीवित हो। सहस्त्रपाणि ने अपने पास खड़े सैनिक की ओर देखा और आदेश दिया,

"इसे उठाओ!"

सैनिक ने एक क्षण के लिए सहस्त्रपाणि के चेहरे को देखा। उसकी आँखों में हिम्मत थी, लेकिन एक क्षण के लिए, उसका अंग भय से हल्के से काँप उठा। रक्तमणि को देखते ही उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी भर गई। फिर भी, सहस्त्रपाणि के आदेश की अवहेलना करना उसके स्वभाव में नहीं था। उसने मन को कठोर किया और धीरे से रक्तमणि की ओर बढ़ा। जैसे ही उसका हाथ चमकती मणि को छू गया, एक भयानक घटना घटी।

मणि से एक प्रचंड गर्मी की लहर उठी और उसी क्षण सैनिक के शरीर से दर्द की एक तेज़ चीख निकली। उसका पूरा शरीर बिजली के झटके से काँपने लगा, उसकी आँखों में तीव्र पीड़ा साफ़ दिखाई दे रही थी। कुछ ही क्षणों में, वह ज़ोर से पीछे की ओर गिर पड़ा और ज़मीन पर गिरते ही उसका शरीर निश्चल हो गया। दरबार में मौजूद हर सैनिक के दिल की धड़कनें रुक गईं। हालाँकि, सहस्त्रपाणि चुप था, मानो उसे इस घटना की उम्मीद थी।

सैनिको में कानाफूसी होने लगी, सहस्त्रपाणि ने उनकी बात अनसुनी कर दी।

"इस रक्तमणि को कोई नहीं छू सकता... लेकिन मैं अलग हूँ, मेरे पास मायावी शक्ति है।"

उसने मुस्कुराते हुए रक्तमणि को देखा और हल्के से अपना हाथ आगे बढ़ाया। हालाँकि, इस बार उसने मणि को सीधे छूने से परहेज किया। अपने हाथ की जादुई शक्ति का इस्तेमाल करते हुए, उसने सिर्फ़ एक उंगली से रक्तमणि की ओर इशारा किया। धीरे-धीरे, मणि हवा में ऊपर उठने लगी और सिंहासन के खोखले भाग से बाहर निकल गई।

लाल किरणें अब और भी तीव्र हो गईं, जो दरबार की पत्थर की दीवारों से परावर्तित हो रही थीं। रक्तमणि का गर्म प्रवाह सहस्त्रपाणि के पूरे शरीर से होकर गुजरने लगा। उसके चेहरे पर संतुष्टि का एक अलग भाव प्रकट हुआ। उस दिव्य मणि की ऊर्जा उसके हाथों में समा गई थी। अब उसके सामने कोई बाधा नहीं बची थी।

उसके चेहरे पर एक क्रूर खुशी झलक उठी।

"यही वह शक्ति है... यही वह चीज़ है जो मेरा अंतिम साम्राज्य निर्माण करेगी!"

सहस्त्रपाणि ने धीरे से अपने हाथ से हल्का सा इशारा किया और रक्तमणि उसकी हथेली के थोड़ा ऊपर आ गया। हालाँकि, उसने इसे सीधे अपनी त्वचा को छूने नहीं दिया था। वह केवल हवा में तैर रहा था , फिर भी उसके आसपास की ऊर्जा सहस्त्रपाणि के शरीर में प्रवाहित होने लगी। इसके चारों ओर फैल रही लाल रोशनी की तीव्रता बढ़ने लगी। अचानक, आसपास के वातावरण में एक अज्ञात भार पैदा हो गया।

ऐसा लगा जैसे हवा का दबाव बदल गया हो। सहस्त्रपाणि ने आँखें बंद कर लीं और अपने शरीर में घुलती हुई एक अजीब सी ऊर्जा को महसूस किया। उसकी नसों में तेज़ी से गर्म लहरें बहने लगीं। कुछ ही पलों में उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं, उसका शरीर हल्का-हल्का कंपन करने लगा। उसके अंदर एक अलग ही आत्मविश्वास पैदा हो गया था।
मानो उसे कोई दिव्य शक्ति मिल गई हो। रक्तमणि की शक्ति अब उसके नियंत्रण में थी। उसके मन में एक विचार कौंधा।

"अब मुझे कोई नहीं रोक सकता!"

उसकी आँखों में अब एक अजीब सी चमक थी। उसने मन ही मन दोहराया,

"अब मैं अजेय हूँ... और अब मेरे लिए उस बच्चे का अंत करना असंभव नहीं है!"


क्रमशः

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