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रक्तपिशाच का रक्तमणि ९७

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ९७

सहस्त्रपाणि अपने सिंहासन पर विराजमान था, फिर भी उसका मन युद्धभूमि के विचारों में मग्न था। उसके कानों तक खबर पहुँच चुकी थी कि राजवीर, आशय और बलदेव अपनी साथिओ के साथ किले की ओर आ रहे हैं। उसने आँखें बंद कर लीं, गहरी साँस ली और एक क्षण सोचा। तभी अचानक उसके होठों पर एक क्रूर मुस्कान आ गई।

"वे आ रहे हैं, तो उन्हें आने दो," उसने मन ही मन बुदबुदाया। उसके स्वर में आत्मविश्वास और क्रूरता थी। उसके  विचार से, यह एक अवसर था, अपने सभी शत्रुओं को एक साथ नष्ट करने का एक स्वर्णिम अवसर! वह जानता था  कि उसकी सेना शक्तिशाली है, उसके शिष्य कठोर प्रशिक्षित योद्धा हैं।

"मेरे हाथ में रक्तमणि हो या न हो, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मेरी शक्ति और मेरे सैनिक इन सभीका नाश करने के लिए पर्याप्त हैं," उसने मन ही मन कहा।

जैसे ही उसने एक हाथ हिलाया, एक सेवक दौड़कर आया और उसके सामने झुककर पूछा,

"आज्ञा दीजिए, महाराज!" सहस्त्रपाणि अपने सिंहासन से उठा, उसका भयंकर चेहरा दरबार में जलती मशालों की रोशनी में और भी भयावह होता जा रहा था।

"मेरे सेनापती और सभी सरदारों को बुलाओ," उसने आदेश दिया।

"आज रात हम इतिहास रचेंगे। यह अंतिम युद्ध है, मेरी शक्ति के विस्तार में कोई बाधा नहीं डाल सकता। यह किला उनकी अंतिम समाधि होगी!" उनकी आवाज़ दरबार की पत्थर की दीवारों से गूँज उठी। दरबार में खड़े सैनिक और सेवक स्तब्ध रह गए। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उनका विरोध कर सके। कुछ ही क्षणों में, उनका सेनापति दरबार में प्रकट हुआ।

दरबार मशालों से जगमगा उठा। सैनिक चारों ओर खड़े हो गए, और सहस्त्रपाणि सिंहासन पर विराजमान हो गया । सेनापति विनम्रतापूर्वक उसके सामने खड़ा हो गया।

सहस्त्रपाणि (ऊँची आवाज़ में) : सेनापति! जो मैं तुम्हे इतने वर्षों से सिखा रहा हूँ,  अब उसे अमल में लाने का समय आ गया है। राजवीर और उसका गिरोह किले पर हमला करने आ रहे हैं।

सेनापति (थोड़ा हैरान, लेकिन गंभीर स्वर में) : महाराज, मुझे यह समाचार पहले ही मिल चुका है। मैंने अपनी सेना तैयार कर ली है। लेकिन आपकी योजना क्या है? क्या हमें उन पर सीधा हमला करना चाहिए, या कोई और योजना है?

सहस्त्रपाणि (मुस्कुराते हुए, आँखों में क्रूरता झलकती है) : योजना? मेरी एक ही योजना है, उनका समूल नाश! वे जहाँ भी पहुँचें, उनके खून की नदियाँ बह जाएँ। इस किले में घुसने से पहले ही उनका सफाया कर देना चाहिए।

सेनापति (गंभीरता से सोचते हुए) :महाराज, उनकी ताकत को कम आंकना हमें बहुत भारी पड़ सकता है। राजवीर सिर्फ़ एक योद्धा नहीं, एक चतुर नेता है। उसके साथ आशय और बलदेव हैं। उसके साथ पिशाच शिकारी और खूँखार नरभक्षक भेड़िये भी हैं। हमें उनसे सीधे मुकाबला करना होगा।

सहस्त्रपाणि (आक्रामक स्वर में) : यह किला मेरा है, यह ज़मीन मेरी है, और यह जीत भी मेरी होगी! वे जो भी हों, मेरी शक्ति के आगे टिक नहीं पाएँगे। अगर पिशाच शिकारी आएँगे, तो वे हमारे मायावी जादू से मारे जाएँगे। अगर भेड़िये आएँगे, तो वे आग के जाल में भस्म हो जाएँगे। और अगर राजवीर आया, तो उसे सिंहासन के चरणों में घुटने टेकने ही पड़ेंगे!

सेनापति (विनम्रतापूर्वक, लेकिन चिंतित स्वर में) : महाराज, क्या हम रक्तमणि का प्रयोग नहीं करेंगे? इसकी शक्ति हमारे पास है ना। अगर हम इसका सही उपयोग करें, तो यह युद्ध पल भर में समाप्त हो सकता है।

सहस्त्रपाणि (आँखें चमक उठीं, ठंडी मुस्कान): वह समय अभी नहीं आया है सेनापति। रक्तमणि मेरी परम शक्ति है। मैं इसका प्रयोग तभी करूँगा जब मुझे इसकी आवश्यकता महसूस होगी। लेकिन अगर मैं उन्हें उससे पहले ही समाप्त कर दूँ, तो यह प्रश्न ही नहीं उठेगा। मैं और मेरे सैनिक ही पर्याप्त हैं।

सेनापति (दृढ़ संकल्प के साथ अपनी मुट्ठियाँ भींचते हुए) : तो महाराज, मैं तुरंत सभी सैनिकों को तैयार होने के लिए कहूँगा। मैं उन पर आक्रमण करूँगा और किले तक पहुँचने से पहले ही उन्हें नष्ट कर दूँगा।

सहस्त्रपाणि (मुस्कुराते हुए, सिंहासन पर पीठ टिकाते हुए) : बहुत बढ़िया! और सुनो, एक बात मत भूलना। इस युद्ध में किसी को भी जीवित नहीं छोड़ना है। यह किला उनके लिए कब्रिस्तान बन जाना चाहिए !

सेनापति (प्रणामस्वरूप) : हाँ, महाराज! मैं आपकी आज्ञा का पालन करूँगा।

सेनापति भागकर बाहर चला गया, जबकि सहस्त्रपाणि अपने सिंहासन पर बैठा क्रूरता से मुस्कुरा रहा था । उसकी आँखों में एक राक्षसी चमक थी, 'जल्द ही खून-खराबा होगा।'

इसी समय, दरबार के कुछ सरदार और प्रधान सभागृह में आए और सहस्त्रपाणि को आदरपूर्वक प्रणाम किया। उनमें से एक ने आगे बढ़कर पूछा,

"स्वामी, हम एक विचार रखना चाहते हैं।"

प्रधान (गंभीर स्वर में) : महाराज, राजवीर और उसकी सेना को सीधे यहाँ आने देकर आप भूल कर रहे हैं। अगर वे सब एक साथ आ गए, तो हमें अनावश्यक प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। हमें नई चतुराई से योजना बनानी चाहिए।

सहस्त्रपाणि (मुस्कुराते हुए, लेकिन व्यंग्यात्मक भाव से) : प्रधान, तुमने मुझे युद्धकला की शिक्षा कब से देनी शुरू कर दी? मेरी सेना और मेरी शक्ति राजवीर और उसके गिरोह का सामना करने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार है। तो इतना सोचने की क्या ज़रूरत है?

प्रधान (थोड़ा आगे आकर, सावधानी भरे शब्दों में) : महाराज, मुझे लगता है कि आप ग़लत दुश्मन से लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। राजवीर हमारा असली दुश्मन नहीं है, असली दुश्मन आर्या के गर्भ में है!

सहस्त्रपाणि (आँखें थोड़ी चौड़ी करके, ध्यान से सुनते हुए) : आर्या?

प्रधान (कंधों को आगे करके, गहरी आवाज़ में) : हाँ, महाराज! आप लगातार राजवीर, आशय और उनकी सेना से लड़ने के बारे में सोच रहे हैं। लेकिन असली ख़तरा उस गर्भ में है। आर्या के गर्भ में पल रहा वह मायावी शिशु हमारे अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। अगर वह जन्म ले गया, तो हमारी सारी शक्तियों से ज़्यादा शक्तिशाली होगा। राजवीर और उसकी सेना को यहाँ आकर उनसे लड़ने देने के बजाय, हमें उसके पीछे वाले गाँव पर सीधा हमला कर देना चाहिए!

सहस्त्रपाणि (गंभीर होकर, सिंहासन से उठते हुए) : मुझे और बताओ...

प्रधान (आक्रामकता से समझाते हुए) : अगर हम किले में बैठकर राजवीर से लड़ेंगे, तो यह युद्ध लंबा चलेगा और हम अनावश्यक सैनिकों को खो देंगे। लेकिन अगर हम सीधे गाँव पर हमला करके आर्या और उसके गर्भ में पल रहे शिशु को मार डालें, तो इस युद्ध को लड़ने की कोई ज़रूरत ही नहीं रहेगी!

सहस्त्रपाणि (गंभीरता से सोचते हुए) : लेकिन अगर आर्या की रक्षा करने वाला कोई हो तो क्या होगा?

प्रधान (मुस्कुराते हुए, आत्मविश्वास से) : सोचिए महाराज। राजवीर, आशय और बलदेव किले में आ रहे हैं। वे अपने सबसे शक्तिशाली योद्धाओं को साथ ले गए होंगे। फिर गाँव की रक्षा के लिए कौन बचेगा? कुछ कमज़ोर सैनिक और आधे-अधूरे पहरेदार! अगर हम वहाँ सीधा हमला करेंगे, तो आर्या और उसका बच्चा पल भर में ही नष्ट हो जाएँगे।

सहस्त्रपाणि (मुस्कुराते हुए, क्रूरता से आँखें चमकाते हुए):  आप सच कह रहे हैं प्रधान। अगर यह बच्चा नष्ट हो गया, तो मुझे किसी से लड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, और राजवीर तो खुद यहाँ फँसने आ रहा है।

प्रधान (और ज़ोर से आगे बढ़ते हुए) : महाराज, रक्तमणि हमारे कब्ज़े में है। लेकिन हम इस युद्ध को बिना इस्तेमाल किए भी जीत सकते हैं। हमें अपनी ताकत का इस्तेमाल सही दिशा में ही करना होगा। अभी राजवीर को हराने का कोई फ़ायदा नहीं है, अगर बच्चा बच गया, तो हमारा अंत हो जाएगा। इसलिए राजवीर के आने का इंतज़ार करने के बजाय, हमें गाँव पर हमला कर देना चाहिए।

सहस्त्रपाणि (ज़ोर से हँसते हुए, दृढ़ता से मुट्ठियाँ भींचते हुए) : बिलकुल सही! हम ऐसा करेंगे। राजवीर और उसके सैनिकों को चकमा देने के लिए हम किले में कुछ सैनिक रखेंगे, लेकिन मैं स्वयं अपने शक्तिशाली सैनिकों के साथ गाँव जाऊँगा।

प्रधान (हँसते हुए, संतुष्टि में सिर हिलाते हुए) : महाराज, यह सही निर्णय है।

सहस्त्रपाणि (सैनिकों की ओर देखते हुए, गरजते हुए) : तैयार हो जाओ! हम गाँव पर तुरंत आक्रमण करेंगे! आर्या के बच्चे के जन्म से पहले ही यह समाप्त हो जाना चाहिए!

सहस्त्रपाणि के आदेश पर सभा गूँज उठी। सैनिक तैयारी करने लगे। प्रधान ने आँखों में विजय की चमक लिए सिंहासन के आगे सिर झुकाया। युद्ध की असली दिशा अब बदल चुकी थी।


क्रमशः

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