भाग ९८
सुबह की धूप में, किले की प्राचीर पर तलवारों की झनकार गूंज रही थी। राजवीर ने अपनी तलवार उठाई, किले के घने अंधेरे में घुस गया और ज़ोर से दहाड़ा,
"आज इस खूनी राक्षस के अंत का दिन है, दोस्तों, तैयार हो जाओ!"
आशय और उसके साथी किले पर हमला करने के लिए तैयार थे। बलदेव के खूँखार भेड़िये आगे बढ़े और एक ही झपट्टा मारकर प्राचीर पर खड़े सैनिकों को पकड़कर नीचे गिरा दिया। भेड़ियों के तीखे काँटों और चुभते पंजों से सैनिक डर के मारे चीख रहे थे। एक भेड़िया एक सैनिक की छाती पर कूद पड़ा, उसे गिरा दिया और किले के नीचे फेक दिया।
किले की प्राचीर पर नरसंहार हो रहा था। भेड़ियों के खूनी नाखून सैनिकों के शरीर में गहराई तक चुभ रहे थे, उनकी चुभती चीखें आसमान तक पहुँच रही थीं। कुछ सैनिकों ने प्रतिरोध करने की कोशिश की, लेकिन वे उन खूँखार भेड़ियों की चपलता और क्रूरता के आगे कुछ न कर सके।
एक भेड़िया झपटा और एक सैनिक के हाथ से तलवार छीनकर अपने तीखे पंजों से उसका गला पकड़ लिया। एक और भेड़िये ने एक योद्धा के सीने के कठोर कवच को अपने पंजों से चीर डाला और उसकी छाती में इतना गहरा वार किया कि आसपास का पत्थर खून की फुहारों से लाल हो गया।
आशय और उसके योद्धाओं ने उन सैनिकों को पीछे हटने का भी समय नहीं दिया। आशय के तलवार की गति इतनी तेज़ थी कि हर सैनिक वार का जवाब देने से पहले ही ज़मीन पर गिर रहा था। आशय के पिशाच शिकारी अचानक अँधेरे से प्रकट हो रहे थे, पल भर में दुश्मन सैनिकों का गला फाड़कर वापस अँधेरे में विलीन होने लगे।
बलदेव स्वयं एक विशाल भेड़िये में बदल गया था, और एक ही झटके में उसने अपने विशाल पंजों से अपने सामने खड़े तीन सैनिकों को उड़ा दिया। किले में अराजकता का माहौल था, सहस्त्रपाणि की सेना का प्रतिरोध कमज़ोर पड़ रहा था, और राजवीर के सैनिकों के तूफ़ान के आगे वह टिक पाएगी या नहीं, यह एक बड़ा सवाल था।
राजवीर ने अपना रौद्र रूप धारण कर लिया था। उसकी आँखों में भीषण आग थी। वह अपने सामने आने वाले हर सैनिक का निर्दयता से सामना कर रहा था। उसके हाथ की तलवार से लाल खून टपक रहा था, और उसका हर वार मौत का कारण बन रहा था। देखते ही देखते किले पर मौजूद सेनाएँ बिखरने लगीं। उनका प्रतिरोध अब अर्थहीन हो गया था।
किले पर कब्ज़ा करने के बाद, राजवीर सीधे किले के अंदर बने दरबार में गया। उसकी नज़रें आस-पास तलाश रही थीं, सहस्त्रपाणि कहाँ हैं? उसका सिंहासन खाली था। राजवीर ने सिंहासन के चारों ओर देखा। यहाँ अभी-अभी संघर्ष हुआ था, लेकिन फिर भी दरबार में एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था। हवा में खून और मांस की गंध तैर रही थी।
मशालों की रोशनी पत्थर की दीवारों पर नाच रही थी। वह सिंहासन के पास गया और देखने के लिए नीचे झुका। किले से भागते समय उसने रक्तमणि यहीं छिपाया था, लेकिन अब वहाँ कुछ भी नहीं था। एक पल के लिए उसके मन में एक विचार कौंधा, सहस्त्रपाणि ने अपनी अगली चाल चल दी है। उसके मन में संदेह की लहर दौड़ गई।
"सहस्त्रपाणि को रक्तमणि मिल गया है... वह यहाँ नहीं है... तो फिर कहाँ है?"
तभी आशय और बलदेव भी वहाँ पहुँच गए। आशय का चेहरा भी उलझन में था।
"राजवीर, कुछ तो गड़बड़ है... इतना बड़ा किला, लेकिन उसकी रक्षा के लिए इतनी छोटी सेना? ऐसा क्यों?"
राजवीर सिंहासन के पास खड़ा था, उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, और उसके हाथ में तलवार अभी भी खून से सनी हुई थी। लेकिन आशय के शब्दों ने उसे एक पल के लिए झिझका दिया। उसने चारों ओर देखा सचमुच, इतना बड़ा किला होने के बावजूद, यहाँ कुछ ही सैनिक तैनात थे। सहस्त्रपाणि इतने चतुर हैं, तो उन्होंने किले की सुरक्षा इतनी कमज़ोर क्यों रखी? उसने अपने अंदर के डर को दबाते हुए आशय की ओर देखा। बलदेव भी उनकी बातचीत पर ध्यान दे रहा था, उसका चेहरा गंभीर था।
"यह किसी तरह का धोखा है," आशय ने किले के खुले प्रांगण में देखते हुए कहा। "अगर यह असली युद्धक्षेत्र होता, तो सहस्त्रपाणि स्वयं यहाँ होता, उसके पराक्रमी योद्धा यहाँ होते... लेकिन वह कहाँ गए?" उसकी आवाज़ संदेह और क्रोध से भरी थी। तभी उन्हें एहसास हुआ कि सहस्त्रपाणि की असली योजना कुछ और ही थी।
बलदेव ने एक घायल सैनिक को खड़ा किया और अपनी तलवार उसकी गर्दन पर रख दी।
"बताओ! सहस्त्रपाणि कहाँ हैं?" सैनिक पहले तो हिचकिचाया, लेकिन जब बलदेव ने उस पर थोड़ा ज़ोर दिया, तो सच उसके मुँह से निकल गया।
"वह तुम्हारे गाँव गया है... आर्या के बच्चे को मौत के घाट उतारने!"
किले के अँधेरे दालन में खून और धूल की गंध अभी भी बनी हुई थी। राजवीर सिंहासन के पास खड़ा था, उसकी आँखों में क्रोध की चिंगारियाँ चमक रही थीं। सामने खाली सिंहासन और गायब हुए रक्तमणि को देखकर, एक पल के लिए उसका दिमाग सुन्न हो गया। लेकिन जब बलदेव ने अधमरे सैनिक से सच उगला कि सहस्त्रपाणि किला छोड़कर उसके गाँव पर चढ़ाई कर चुके हैं, तो राजवीर के चेहरे का गुस्सा धधकती आग में बदल गया।
राजवीर के मन में बिजली कौंधी। बिना एक पल की हिचकिचाहट के, उसने आदेश दिया,
"किला छोड़ो! फ़ौरन गाँव पहुँचो! यह युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है। दरअसल, यह युद्ध नहीं था, यह सहस्त्रपाणि की हमें धोखा देने की एक योजना थी और हम इसमें फँस गए हैं।" वह गुस्से में चिल्लाया और अपनी तलवार ज़मीन पर पटक दी। वह इस युद्ध को जीतकर खुश नहीं था, क्योंकि असली लड़ाई किले में नहीं, बल्कि गाँव में शुरू होने वाली थी।
यह सुनते ही आशय और बलदेव के चेहरों पर भय के भाव उभर आए। अब उन्हें समझ आ गया था कि सहस्त्रपाणि ने किले को एक जाल की तरह इस्तेमाल किया था। किले की लड़ाई में उन्हें उलझाकर, वह अपने सबसे बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ चुका था, आर्या के गर्भ में पल रही रहस्यमयी शक्ति को नष्ट करना यही उसका अंतिम लक्ष्य था!
आशय ने उसके कंधे पर हाथ रखा। उसका स्वर गंभीर था, लेकिन उसकी आँखें दृढ़ थीं।
"अभी समय नहीं बीता है, राजवीर। सहस्त्रपाणि ने हमें गुमराह किया है, लेकिन हमारे पास अभी भी एक मौका है। हमें तुरंत गाँव के लिए निकलना होगा। हमारे युद्ध का असली लक्ष्य आर्या और उसके बच्चे को बचाना है।"
बलदेव भी सामने आया, उसके भेड़िये गुर्रा रहे थे, मानो वे भी नए युद्ध के लिए उत्सुक हों। बिना एक पल की भी हिचकिचाहट के, तीनों ने एक-दूसरे को देखा और चल पड़े, एक नए युद्ध के लिए, जो इस पूरी सृष्टि का भाग्य तय करने वाला था।
"मेरे भेड़िये जल्द ही हमारे गांव पहुँच जाएँगे," बलदेव ने कहा। "और अगर सहस्त्रपाणि आर्या की ओर बढ़ रहा है, तो हमें उसे रोकने के लिए अभी निकलना होगा!"
समय की बर्बादी घातक साबित हो सकती थी। उसने एक तेज़ चीख मारी, और उसके राक्षसी भेड़िये, जिनकी निगाहें दूर से आती गरजती हवा की तरह भयंकर थीं, दौड़कर उनकी ओर आए।
"तुम सब हमारी पीठ पर चढ़ जाओ," बलदेव ने आशय और पिशाच शिकारियों की ओर देखते हुए अधिकारपूर्ण स्वर में कहा,
"अब समय नहीं बचा है। आर्या को बचाने के लिए हमें जल्द से जल्द गाँव पहुँचना होगा।"
आशय ने राजवीर की ओर देखा, और उसकी आँखों में गंभीरता देखकर कहा,
"हाँ। अब एक पल भी देर मत करो।" उसके शब्दों में चिंता नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प था। सबने जल्दी से बलदेव के साथी भेड़ियों की पीठ पर अपनी जगह ले ली। उन शानदार, भयानक जीवों की पीठें किसी शक्तिशाली युद्ध अश्व की पीठों की तरह गर्म और विश्वसनीय लग रही थीं। हवा का सामना करते हुए, वे सभी किले के संकरे रास्ते को पार करते हुए, चट्टानों को फांदते हुए, जंगल की ओर बढ़ गए।
धूल और हवा के साथ, अब उनकी आँखों के सामने एक ही लक्ष्य था, गाँव और आर्या के उस बच्चे की रक्षा करना अब उनके अस्तित्व की लड़ाई थी। राजवीर ने एक बार किले की ओर देखा। उसकी आँखों में अब बस एक ही चीज़ थी, सहस्त्रपाणि का सम्पूर्ण विनाश! और उस विनाश का समय अब निकट था।
"सब लोग साथ रहो! हम गाँव पाए जाने वाले हर सैनिक पर टूट पड़ेंगे!" राजवीर ने आदेश दिया, और उसकी दहाड़ से पूरा इलाका काँप उठा।
क्रमशः
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