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रक्तपिशाच का रक्तमणि ९९

एक रक्त पिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ९९

सुबह के उजाले में गाँव का द्वार हल्के कोहरे में लिपटा हुआ था, लेकिन उस कोहरे के बीच से सहस्त्रपाणि की सेना आक्रमण करने आ रही थीं। उसके योद्धाओं के चेहरों पर क्रूरता झलक रही थी, और उनके शरीर पर जादू का एक काला आवरण लहरा रहा था। आकाश में पक्षी चहचहाने लगे, मानो प्रकृति भी इस विपत्ति के संकेत से भयभीत हो गई हो। उनके अस्त्रों की धाराएँ और उनके चारों ओर काली ऊर्जा की लहरें वातावरण में भय और अंधकार फैला रही थीं।

आर्या की रक्षा के लिए द्वार पर खड़े कुछ लोग एक क्षण के लिए स्तब्ध रह गए, सामने शत्रूओ से निकल रही ऊर्जा मानवीय नहीं, कुछ और थी। उन्होंने अपने हथियार उठाए, लेकिन उन पर आती सेना के हमले आकाश से बिजली की तरह गिर रहे थे।

उन्होंने आक्रमण का विरोध करने की कोशिश की, लेकिन सहस्त्रपाणि के भयंकर योद्धा उन पर बिजली की तरह टूट पड़े। तलवारें, त्रिशूल और काले जादू की लहरें गाँव की दीवारों पर प्रहार करने लगीं। कुछ ही क्षणों में, रक्षक ढह गए, गाँव में एक मृत सन्नाटा छा गया, और सहस्त्रपाणि का अंधकार गाँव के हृदय की ओर बढ़ने लगा, जहाँ आर्या और उसके गर्भ में पल रहा अनमोल शिशु राजवीर की प्रतीक्षा कर रहे थे।

सहस्त्रपाणि सीधे राजवीर के घर की ओर मुड़ा। उसके मन में केवल एक ही लक्ष्य था, आर्या के गर्भ में उस अज्ञात लेकिन शक्तिशाली जीवन का अंत। वह द्वार पर पहुँचा। आर्या ने पहले ही द्वार अंदर से बंद कर लिया था। वह एक कोने में दीवार से टिकी, हाथ में तलवार लिए बैठी थी। उसकी आँखों में भय था, लेकिन उस भय के पीछे संकल्प और विश्वास झलक रहा था, राजवीर पर विश्वास।

भोर के शांत प्रकाश में सहस्त्रपाणि आर्या के घर के सामने खड़ा था। उसकी आँखें तिरछी रोशनी से चमक रही थीं और उसका चेहरा एक अजीब सी क्रूरता से ढका हुआ था। उसके पीछे, उसके कुछ शक्तिशाली शिष्य और सरदार सावधानी से खड़े थे। घर को देखते हुए उसे कोई बाधा महसूस नहीं हुई, द्वार बंद था, लेकिन उसे वह कागज़ के एक टुकड़े जैसा हल्का लग रहा था। उसे पता भी नहीं था कि वातावरण पर एक अजीब सा बोझ छाने लगा था, मानो प्रकृति स्वयं आर्या के भीतर की शक्ति की रक्षा कर रही हो।

घर के अंदर, आर्या एक कोने में दीवार से टिकी बैठी थी। उसके हाथ में एक चमकती हुई तलवार थी, वही जो राजवीर ने उसे खास तौर पर दी थी। उसका शरीर काँप रहा था, लेकिन उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, एक बेचैनी भरी जीवंतता थी। उसके मन में बस एक ही विचार था,

"मैं उसे बचाऊँगी, वह न केवल मेरी संतान है, बल्कि सृष्टि के भविष्य का बीज है।" वह बाहर की हर आहट, हर सरसराहट साफ़ सुन सकती थी। लेकिन वह स्थिर थी। क्योंकि उसे यकीन था, राजवीर आएगा, और वह समय पर आएगा।

आर्या की साँसें तेज़ हो गई थीं, लेकिन उसका मन अभी भी स्थिर था। उसका शरीर पसीने से लथपथ था, यह डर की नहीं, बल्कि धड़कते दिल की प्रतिक्रिया थी। उसकी निगाह घर के दरवाज़े पर टिकी थी, मानो वह किसी भी क्षण उस दरवाज़े से राजवीर के प्रकट होने का इंतज़ार कर रही हो।

उसने अपनी तलवार कस कर पकड़ रखी थी, उसमें कोई ढील नहीं थी। यह एक माँ की तत्परता थी, जो जानती थी कि उसके गर्भ में पल रहा बच्चा सिर्फ़ खून का रिश्ता नहीं, बल्कि इस दुनिया का भविष्य है। उस पल, वह सिर्फ़ एक माँ नहीं, एक योद्धा थी।

दरवाज़े के बाहर एक हल्की सी आवाज़ आई, मानो कोई दरवाज़े की ओर आ रहा हो। आर्या ने अपनी साँस रोक ली। उसने तलवार को और भी कसकर पकड़ लिया। वह दीवार से और भी ज़्यादा टिक गई, उसका शरीर पत्थर की तरह अविचल था। उसके मन में एक विचार घूम रहा था।

"अगर यह सहस्त्रपाणि है, तो मैं इसकी हर साँस छीनने का प्रयास करूंगी। अगर मैं अकेली भी रहूँ, तो भी पीछे नहीं हटूँगी।" एक पल के लिए उसकी आँखों में आँसू आ गए, लेकिन वे आँसू नहीं थे, वे एक माँ के अपार संकल्प का प्रतिबिंब थे। बाहर चाहे कोई भी हो, आज उसका दृढ़ संकल्प नहीं डगमगाने वाला था।

सहस्त्रपाणि ने दरवाज़े पर ज़ोर से लात मारी, दरवाजा टूट गया, और वह अंदर आ गया। सामने उसने आर्या को देखा। उसका शरीर साफ़ दिखाई दे रहा था क्योंकि वह गर्भवती थी। उसने उसे देखा और बेरहमी से मुस्कुराया।

"जिसका तुम इंतज़ार कर रही हो, उसके आने में बहुत देर हो जाएगी। और मैं तुम्हारे पेट में मौजूद उस अपार शक्ति को इस दुनिया में आने से पहले ही नष्ट कर दूँगा।"

सहस्त्रपाणि की क्रूर मुस्कान में आर्या चुप थी, लेकिन उसके शरीर की हर कोशिका युद्ध के लिए तैयार लग रही थी। वह गर्भवती थी, थकी हुई थी, लेकिन उसके हाथ में तलवार अभी भी नहीं काँपी थी। वह उठी, दीवार से टिककर स्थिर खड़ी हो गई। उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, एक शांत लेकिन उग्र संकल्प था।

"क्या तुम्हें लगता है कि तुम मुझे नुकसान पहुँचा सकते हो, लेकिन मेरे पेट में जो है उसकी रक्षा करना इस सृष्टि का काम है। तुम इससे नहीं जीत सकते। मैं तुम्हारा विरोध करूँगी," उसने धीमी लेकिन दृढ़ आवाज़ में कहा।

"मेरे पेट में मौजूद शक्ति अभी इस दुनिया में नहीं आई है, लेकिन अब यह सिर्फ़ मेरे गर्भ में नहीं है, यह मेरी इच्छाशक्ति में भी है। और मेरी इच्छाशक्ति, सहस्त्रपाणि, तुम्हें रोकने के लिए पर्याप्त है।"

सहस्त्रपाणि एक पल के लिए रुक गया। उसने आर्या के शब्दों में कुछ अलग महसूस किया, एक कंपन जो सिर्फ़ शब्द नहीं था। उस पल वह और ज़्यादा सतर्क हो गया। उसने उस महिला को अपने सामने कमज़ोर नज़रों से खड़ा देखा था, लेकिन अब उसे उसके भीतर कुछ और भी मज़बूत महसूस हुआ, कुछ ऐसा जो उसकी समझ से परे था। वह आगे बढ़ने लगा, लेकिन हर कदम के साथ उसे एहसास हुआ कि वह सिर्फ़ आर्या के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि एक उच्च शक्ति के ख़िलाफ़ खड़ा था।

सहस्त्रपाणि की गति हवा की गति जैसी थी। वह आर्या की ओर झपटा, लेकिन आर्या भागी नहीं। वह खड़ी हुईं, अपनी तलवार उठाई और पूरी ताकत से उस पर वार किया। उसका चेहरा पसीने से भीगा हुआ था, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी अटूट संकल्प था। सहस्त्रपाणि ने आसानी से उसका वार रोका और तलवार को अपने गर्म हाथ में थाम लिया। तलवार उसके हाथ में ज़ोर से लगी, और आर्या की पकड़ ढीली पड़ गई। सहस्त्रपाणि ने एक भयानक मुस्कान दी और अपनी काँपती मुट्ठी से आर्या के पेट पर घूँसा मारने की कोशिश की, विजय के भाव से वह उसकी ओर झुका।

हालाँकि, उस स्पर्श का क्षण साधारण नहीं था। ऐसा लगा जैसे आर्या के शरीर से निकल रही किसी प्राचीन शक्ति ने छू लिया हो। उसके पेट से एक शक्तिशाली, चमकदार लाल प्रकाश फूट पड़ा और सहस्त्रपाणि के हाथ पर लगा। उस प्रकाश का बल इतना प्रबल था कि वह कुछ फीट पीछे हट गया।

उसके शरीर की हर मांसपेशी फड़कने लगी, उसकी आँखों की क्रूरता एक पल के लिए फीकी पड़ गई। वह ज़मीन पर गिर पड़ा और एक पल के लिए निश्चल पड़ा रहा, पहली बार, सहस्त्रपाणि को किसी स्त्री और एक ऐसी शक्ति ने पीछे धकेला था जो अभी तक पैदा भी नहीं हुई थी।

वह खड़ा हो गया, उसकी आँखें चौड़ी हो गईं, वह उस ऊर्जा को घूर रहा था। "यह क्या था? सिर्फ़ एक स्पर्श से मुझे इतना चक्कर आ सकता है?" उसे एहसास हुआ कि आर्या का बच्चा कोई साधारण नहीं था। वह सोचने लगा, अगर बच्चा इतना शक्तिशाली है, तो बड़ा होने पर क्या करेगा?

वह फिर आर्या के पास गया, इस बार एक अलग योजना के साथ। "अगर मैं आर्या को नष्ट कर दूँगा, तो अजन्मा बच्चा अपने आप मर जाएगा," उसने घृणा से सोचा, अपनी बेल्ट से खंजर निकाला और आर्या की गर्दन पर ज़ोर से फेंक दिया। खंजर उसे लगा।

जब खंजर आर्या पर लगा, तो उस पल वह सिर्फ़ एक हथियार नहीं था, वह अंधकार से भरी एक विकृति थी। आर्या की गर्दन से खून बह रहा था, उसका शरीर काँपते हुए गिर पड़ा था, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। वह शांति सिर्फ़ मौत का सामना करने की नहीं थी, बल्कि भरोसे की थी, राजवीर पर, अपने अजन्मे बच्चे पर और नियति पर। उसकी आँखों की चमक मानो सहस्त्रपाणि से कह रही हो,

"मैं हारी नहीं हूँ।" उस घायल अवस्था में भी, वह सावधानी से अपना हाथ अपने पेट पर रखे हुए थी, मानो धड़कते हुए जीवन को सहारा देने की कोशिश कर रही हो। हालाँकि उसकी आँखें बंद थीं, फिर भी उसकी ताकत, उसकी इच्छाशक्ति और उसका संघर्ष अभी भी ज़िंदा था, और यही संघर्ष उसका भविष्य तय करने वाला था।

उसी पल, सहस्त्रपाणि के चेहरे पर खुशी की चमक थी। "शत्रु का अंत हो गया!" कहते हुए, वह अपने सैनिकों के साथ गाँव से निकल गया।

क्रमशः

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