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रक्तपिशाच का रक्तमणि ९

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी

भाग ९

त्रिकाल अपने साम्राज्य का विस्तार करने की योजना बना रहा था। उसने राजवीर को खत्म करने के लिए एक भयानक योजना बनाई। उसने दूसरे साम्राज्यों के अपने दोस्तों, रक्तपिशाचों को एक साथ लाने का फैसला किया। ये पिशाच कही दूर दूर अपना साम्राज्य फैला रहे थे, लेकिन उन्हें फिर से एक साथ लाकर, त्रिकाल उनकी शक्तियों का इस्तेमाल राजवीर को खत्म करने के लिए करने वाला था। इस योजना के लिए उसे चार क्रूर और शक्तिशाली साथियों की ज़रूरत थी।

त्रिकाल ने सबसे पहले अपने लोगो को बुलाया और विकराल, अक्राल, शिवकाल और द्रोहकाल के पास भेज कर उन्हें संदेश देकर अपने साथ बुला लिया। इन चारों का इतिहास भयानक और रक्तरंजित था।
विकराल एक अत्यंत बलवान और क्रूर राक्षस था। उसका शरीर विशाल था। अपने घातक पंजों और दांतों से वह अपने शत्रुओं को क्षण भर में ही कुचल सकता था। वह पूर्व के दुर्गम पहाड़ों में रहता था और वहाँ के ग्रामीणों में आतंक मचा रखा था। त्रिकाल का आदेश मिलते ही विकराल तैयार हो गया। उसे राजवीर का रक्त पिने की लालसा बुला रही थी, जिससे उसे असीमित शक्ति प्राप्त होने की संभावना थी।

तो, अक्राल एक अप्रतिम गति वाला पिशाच था। वह पश्चिम के रेगिस्तानी क्षेत्र में रहता था। वहाँ के रेगिस्तान में उसने कई यात्रियों को मार डाला था। उसकी आँखें लाल और टेढ़ी थीं, जिससे उसके बाकी साथी उसे भेदक समझते थे। त्रिकाल ने उसे राजवीर के विरुद्ध षडयंत्र का विचार बताया। उसने सोचा कि राजवीर की पराजय से उसे एक नए साम्राज्य का अधिकार मिल जाएगा।

तीसरा था शिवकाल, जिसे 'खूनी दरिन्दा' कहा जाता था, वह दक्षिण के घने जंगलों में रहता था। उस क्षेत्र में उसका अस्तित्व एक भूत की तरह था। वह अपनी साँसों से ही हवा को हिला सकता था और अपने शिकारको डरावने सपने दिखाता था। त्रिकाल का संदेश पाते ही जंगल की अंधेरी परछाइयों को पार करके वह त्रिकाल के पास पहुँच गया।

चारों में द्रोहकाल सबसे चालाक और रणनीति तज्ञ था। वह उत्तर दिशा के बर्फीले पहाड़ों में रहता था। वहाँ जाने वाले यात्री कभी वापस नहीं लौटते थे, क्योंकि द्रोहकाल अपने कोमल रूप से उन्हें धोखा दे देता था। वह राजवीर से युद्ध करने के लिए आतुर था, क्योंकि उसे भी त्रिकाल जैसी शक्ति चाहिए थी।

जब वे सभी त्रिकाल के सामने एक साथ आये, तब त्रिकाल ने उन सबको अपनी योजना बताई।

त्रिकाल ने कहा, "हमारे गुरुवर्य सहस्रपाणि ने हमसे गुरुदक्षिणा माँगी थी। उन्होंने कहा था कि हमें राजवीर का रक्त गुरुवर्यके बालों पर मलना है, जिसकी उन्होंने शपथ ली हुई थी। अब उनके आदेश का पालन करने का समय आ गया है।"

विकराल ने पूछा, "लेकिन क्या राजवीर अब भी इतना ताकतवर है कि तुम्हें हम सबकी ज़रूरत आन पड़ी है?"

द्रोहकाल ने त्रिकाल का मज़ाक उड़ाते हुए सहमति जताई। "विकराल, क्या तुम्हारा मतलब है कि त्रिकाल अब कमज़ोर हो गया है और वह अकेले एक साधारण पिशाच से जो सिर्फ पालतू जानवरों का खून पिता हे उससे अकेला नहीं लड़ सकता।"

उसकी बात सुनकर अकराल और शिवकाल दोनों ज़ोर से हँस पड़े।
शिवकाल ने कहा, "त्रिकाल, अब तुम बूढ़े हो गए हो, तुम्हारी धमनियों में पहले जैसी ताकत नहीं रही, तुम अब भी शिकार कर सकते हो या तुम भी उस राजवीर की तरह मुर्गियों और पालतू कुत्तों का खून पी कर जी रहे हो।"
"क्या तुम कभी राजवीर के सामने गए हो? अगर गए होते, तो आज यह बात नहीं कह पाते। मैं हु इसलिए अभी भी ज़िंदा हूँ। अगर तुम अकेले उसके सामने गए, तो तुम्हारी कुछ खैर नहीं ।" त्रिकाल ने सबसे कहा।
"उसमें इतनी शक्ति है इसीलिए गुरुवर्य ने उसका खून माँगा होगा, है ना? लेकिन हम चारों की शक्ति के सामने वह टिक नहीं पाएगा।" इतनी देर से चुप रहनेवाला अक्राल बोलने लगा।

"उसकी शक्ति हमसे ज़्यादा नहीं है। मैंने कई बार उसे उठाकर पटका है, बेहोश भी किया है, लेकिन किसी तरह वह फिर से उठ कर खड़ा हो जाता है और चालाकी से मुझे हरा देता है।" त्रिकाल अपने नाखूनों से खेलते हुए बोल रहा था।

"इस दुनिया में मुझसे ज़्यादा चालाक कोई नहीं है। इस बार हम उससे हमेशा के लिए निपट लेंगे, लेकिन उसकी शक्ति में सबको हिस्सा मिलना चाहिए।" द्रोहकाल ने वही कहा जो सबके मन में था।

"मैं सहमत हूँ।" त्रिकाल ने सिर हिलाया।

"बताओ तुम्हारी क्या योजना है।" शिवकाल ने सीधे सवाल किया।

त्रिकाल ने जवाब दिया, "हाँ, अभी वह अकेला है। अपने पुराने दोस्तों से दूर है और अपनी शक्तियो का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। अगर हम सब मिलकर उस पर हमला करें, तो वह कुछ नहीं कर पाएगा।"
"और सबसे ज़रूरी बात, हो सकता है उसे एक इंसानी लड़की से प्यार हो गया हो। अगर उसे काबू नहीं किया जा सका, तो हम उस लड़की को पकड़ लेंगे, तो फिर वह अपनी नाक मुट्ठी में लेकर हमारे सामने आ जाएगा, तब हम उसका काम तमाम कर सकते हैं।" त्रिकाल ने आगे कहा।

द्रोहकालने पूछा, "अब हम उसे कहाँ ढूँढ सकते हैं?"

त्रिकाल ने कहा, "वह एक छोटे से गाँव में छिपा है। वह इंसानों के साथ रहने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अपने रूप के कारण, वह जल्द ही वहाँ पकड़ा जाएगा। हमें इस मौके का फ़ायदा उठाना होगा, इससे पहले कि इंसान उसे मार डालें।"

"वह इस समय उस गाँव के अंत में एक पुराने हवेली में रह रहा है। वह हवेली जंगल के ठीक बगल में है, अगर वह उस हवेली में मारा भी गया, तो भी सब यही सोचेंगे कि किसी जंगली जानवर ने उसका शिकार किया है।"
त्रिकाल ने उन चारों को विस्तार से बताया कि राजवीर तक कैसे पहुँचा जाए और उसे कैसे हराया जाए।

"विकराल, तुम अपनी ताकत का इस्तेमाल करके उसे रोको। अक्राल, तुम उसकी हरकतों पर नज़र रखो। शिवकाल, तुम उसके चारों ओर भय पैदा करो। और द्रोहकाल, तुम उसे छल से फँसाओ। अगर हम सब मिलकर काम करें, तो राजवीर को हराना नामुमकिन नहीं है।"

वे चारों त्रिकाल की योजना से सहमत हो गए। वे जानते थे कि राजवीर का रक्त प्राप्त करना न केवल गुरुदक्षिणा पूरी करना है, बल्कि उसकी अद्भुत शक्ति का एक अंश भी प्राप्त करना है। इसलिए, वे उसे मारने के लिए आतुर हो गए थे।

त्रिकाल ने अपने मोहरे तैयार करके उन्हें अपना काम करने के लिए भेज दिया। उसने खुद राजवीर के गाँव के जंगल में फिरसे जाने का फैसला किया। उसे यकीन था कि आर्या राजवीर की कमज़ोरी बन सकती है। उसके दिमाग में एक अलग ही योजना घूम रही थी, राजवीर को हराने के लिए आर्या को अपने खिलाफ एक शक्तिशाली हथियार के रूप में इस्तेमाल करना, अगर उसने आर्या को पकड़ लिया, तो चाहे उसके पास कितनी भी शक्ति क्यों न हो, वह चारों का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।

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जंगल में जो कुछ हुआ उसके बाद राजवीर अभी भी आर्या के बारे में सोच रहा था। उसने उस खतरे को देखा था जिसमें वह थी और उसकी आँखों में आया हुआ डरभी देखा था। लेकिन उसने तय कर लिया था कि उसकी रक्षा करना उसकी प्राथमिकता होगी। उसे क्या पता था कि उसके विरोधी अब बढ़ गए है।

इस बीच, आर्या अभी भी राजवीर के दिमाग को ढूँढ़ने की कोशिश कर रही थी। वह उसके अतीत के बारे में ज्यादा जानना चाहती थी, लेकिन राजवीर उससे दूर रहने की कोशिश कर रहा था। वह उसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाने को तैयार नहीं था, क्योंकि उसे लग रहा था कि इससे आर्या को नुकसान पहुँचेगा।

त्रिकाल और उसके साथी राजवीर को ढूँढ़ रहे थे और गाँव आने की तैयारी कर रहे थे। अगले कुछ दिनों में राजवीर और त्रिकाल के बीच संघर्ष होना तय था। यह टकराव न सिर्फ़ उनके जीवन को प्रभावित करने वाला था, बल्कि आर्या और उस गाँव के लोगों के भविष्य को भी प्रभावित करने वाला था।

समय अब निर्णायक मोड़ पर आ चूका था। एक तरफ़ राजवीर अकेला था, दूसरी तरफ़ त्रिकाल और उसके ताकतवर दोस्त थे, जो उसकी ज़िंदगी के नए प्यार आर्या पर नज़र गड़ाए हुए थे और उसे मारने की साज़िश रच रहे थे। जल्द ही उन सबके जीवन में एक बड़ा संघर्ष होने वाला था, जिसमें एक नया नरसंहार हो सकता था।

क्रमशः

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