भाग ३
आर्याके हवेलीसे लौटने के बाद, उसके मन में कल हुए हुऐ घटना का तूफान मचा हुआ था। राजवीर का अजीब व्यवहार, उसकी आंखों में देखी गई भूख, और उसके रक्त के पिने के लिए मचलना, ये सभी लगातार उसके दिमाग में आगे बढ़ रहे थे। वह एक विज्ञान की छात्रा थी; वह आसानी से ऐसी चीजों पर विश्वास नहीं कर सकती थी। लेकिन उसके दिमाग के कोने में कहीं, बहुत सवाल खड़े हो रहे थे, वास्तव में राजवीर कौन है? और उसका व्यवहार इतना अलग क्यों है? ये सोचते सोचते वह पूरी रात सो नहीं पाई। उसने कल फिरसे हवेली में वापस जाने का फैसला किया।
जिज्ञासा और भय के बजह से उसकी धड़कने तेज हो रही थी। आर्या अगले दिन उस हवेली में वापस चली गयी । वह हवेली का हर कोना फिरसे देखना चाहती थी। उसने फैसला किया था कि इस बार वह उस जगह को अधिक बारीकी से अध्ययन करेगी। शायद उसे कुछ ऐसा मिल सकेगा जो उसके सभी सवालों के जवाब दे सके।
जैसे ही उसने हवेली में प्रवेश किया, उसके दिल में एक धड़धड़ीसी मच गयी । क्या राजवीर फिर से वहां दिखेगा ? उसने धीरे पैरो से हवेली में प्रवेश किया। हर जगह शांति थी; केवल उसके नक्शेकदम के आवाजो के सिवाय कोई आवाज नही आ रही थी। हवेली की पुरानी दीवारें, टूटी हुई छत, और कोने कोनों में मकड़ियों के जाले, जो सभी आर्याको एक अभूतपूर्व वातावरण में ले जा रहे थे।
आर्या एक बड़े कमरे में गई, जहाँ उसने कुछ हड्डीयों के अवशेषों को देखा। आर्या ने उसमे से एक हड्डी अपने हाथ में ले ली, और उसे एहसास हुआ कि यह किसी जानवर के अवशेष थे, कोई छोटा हिरन या जंगली खरगोश। इसके अलावा वहा कुछ और पालतू जानवर के अवशेष भी बिखरे पड़े हुए थे। कुछ स्थानों पर, सूखे लाल रंग के धब्बे भी देखे जा सकते थे। वह अंदर से हिल गई। उसे कल की घटना फिर से याद आने लगी, जब राजवीर उसकी उंगली से खून खींच खींच कर चूस रहा था।
आर्या वहाँ से रसोई की दिशा में निकल पड़ी । रसोई के एक कोने में, उसने एक पुराना कांच का गिलास देखा, जिसमें नीचे की तरफ एक लाल रंग का तरल पदार्थ दिख रहा था। वह किसीके खून की तरह ही लग रहा था। उसके शरीर में अचानक एक ठंडी लहर फैल गयी। यह क्या है ? उसका मन उसे बता रहा था कि इस आदमी का इस सब के साथ कुछ रिश्ता जरूर है। उसे लग रहा था की वह उस हवेलीसे अभी के अभी निकल जाय, लेकिन उसने वह विचार छोड़ दिया। वह अभी भी वहां कुछ और खोजना चाहती थी।
रसोई के बगल में, उसने एक कोठरी में एक गंदे कोट को देखा। वह राजवीर की ऊंचाई के साथ मेल खा रहा था, जब राजवीर कल आर्याको मिला था, तब शायद उसने वही कोट पहना हुआ था। उसे कोट के जेब में एक छोटी सी किताब मिली। किताब का शीर्षक था "रक्तपिशाचों का रहस्य"। किताब के मुखपृष्ठ का रंग गहरा लाल था, और इसमें पिशाच जैसे जानवरों के चित्रण का एक अजीब वर्णन पढ़ा जा सकता था।
गहरे लाल और काले रंग की सतह, जैसे कि वह मुखपृष्ठ खून से लिपटा हुआ दिख रहा था। मुखपृष्ठ के बीच में, एक पुरानी हवेली की छबि दिख रही थी, जो चंद्रमा के मंद प्रकाश में अधिक भयानक लग रही थी। हवेली के खिड़कियो में से एक अंधेरा निकल रहा था, और चारों ओर एक गहरे कोहरे का धुँआ फैला हुआ नजर आ रहा था।
पुस्तक के शीर्षक के लिए उपयोग किए जाने वाले अक्षर बड़े और तेज खून जैसे लाल रंगों से भरे हुए थे। एक अँधेरी छाया की छवि को अक्षरों के नीचे रखा गया था, जिसकी आँखे चमकदार लाल रंग जैसी दिख रही थी। यह छवि वाचकको पिशाच के अस्तित्व से डराने के लिए काफी थी।
पृष्ठ्भाग के निचले हिस्से में एक वाक्य को उजागर किया गया था:
"अमरता की क़ीमत सिर्फ और सिर्फ खून से गिनी जा सकती है।"
किताब के कोनों पर पुराने ज़माने के अक्षर धुंदलेसे दिख रहे थे। पूरी सतह पर एक रहस्यमय और भयानक वातावरण बनाया गया था, जिससे पाठक को पहली नज़र में ही कहानी खोलकर पढ़ने के लिए मजबूर किया जा सकता था।
आर्याने पुस्तक खोली और इसमें लिखी हुई कहानी पढ़ने की कोशिश की। इस किताब में अमरता का वर्णन किया गया था, खून पिने की आवश्यकता होने वाले इंसानो के बारे में और ऐसे इंसानो के जीने के तरीके उसमे लिखे गए थे । एक बात आर्या के दिमाग में स्पष्ट थी, 'वह आदमी एक साधारण आदमी नहीं है। उसका मन राजवीर को एक रहस्यमय इंसान से जोड़ रहा था।'
किताब को अपने हाथ में पकड़े हुए, आर्याने फैसला किया कि वह इसके बारे में राजवीर को जरूर पूछेगी। वह राजवीरका असली रूप समझना चाहती थी। लेकिन इससे पहले उसे इस हवेली के बाहर निकलना जरुरी था, शायद राजवीरने उसके ऊपर हमला किया, तो उसे अपनी आत्मसुरक्षा के लिए कुछ तो साथ रखना पड़ने वाला था। वह जल्दीसे वहा से निकली। हवेली के हर दरवाजे से बाहर निकलते वक्त उसके दिमाग में डर दौंड रहा था। कब वह यहासे बाहर निकल कर अपने घर पहोचती है इसका वह अन्दाजा लगा रही थी।
हवेली के बाहर निकलते वक्त ही, उसने बाहर राजवीर को देखा। वह आर्या के अंदर से आते हुए देखते ही, सावधान हो गया। उसकी आँखों में एक तरह की चिंता थी, जैसे कि वह जानता था कि उसके बारे में वह सब जान गई थी। आर्या डर डर के उसके सामने चली आई और उसके हाथ में वह किताब रखकर बोलने लगी।
"यह पुस्तक यहाँ कैसे आई? और आपने कल मेरा खून क्यों पीया?"
राजवीर चुप था। उसके दिमाग में डर का तूफान मचल रहा था। अगर आर्याने गाँव में ये सब बता दिया, तो सारे गाँववाले उसे पकड़ लेंगे, और फिर किसी झाड़ को लटकाकर जिन्दा जला देंगे।
राजवीरने उसे जवाब देने की कोशिश शुरू की।
"कल मैंने सिर्फ आपके उंगली के घावोंसे आनेवाले खून को रोकने की कोशिश कर रहा था। खून का बहाव देखने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि अगर उसका बहना बंद नहीं किया गया तो आपके शरीर को बड़ा नुकसान हो सकता है। मेरा लक्ष्य केवल आपकी मदद करना था।"
आर्या थोड़ी देर तक शांत रही, लेकिन उसे अभी भी राजवीर पर संदेह था। "लेकिन यह किताब? और रसोईघर में जानवरों के अवशेष उसका क्या जवाब है तुम्हारे पास? तुम्हारा इस हवेलीमें अकेले रहना, इस बारे में क्या स्पष्टीकरण है?"
"यह किताब तो किसी भी पुस्तकालयमें मिल जाएगी। लोग हमेशा पिशाच की कहानियाँ पढ़ने में रुचि रखते हैं। यहाँ मिले जानवरों के अवशेष शायद कभी शेर, चीता या इस तरह के जानवर यहां आकर अपना शिकार खाते होंगे, ऐसे जानवर हमेशा अपने शिकार को छिपा कर रखते है, फिर जब भी भूख लगे तब आकर फिरसे अपना पेट भर लेते है।" राजवीर ने आर्यासे कहा।
उसका स्वर इतना संयमित था कि आर्या का दिमाग विचलित हो गया था। वह उस पर विश्वास करने लगी थी।
हालांकि, राजवीर का दिमाग अभीभी अस्थिर था। वह जानता था कि यह महिला को सच पता चलना उसके लिए घातक हो सकता है। यदि उसे राजवीर के बारे में ज्यादा संदेह होता है, और गाँव जाकर सभी को बता देती है, तो सारे गाँववाले उसे मारने की कोशिश जरूर करेंगे।
लेकिन आर्याकी प्यारी नजर उसे पागल बना रही थी। उसने आर्या की आँखों में विश्वास और जिज्ञासा का एक अजीब मिश्रण देखा था।
आर्या ने फिर से कहा, "ठीक है, मैं आपका विश्वास करती हूं। लेकिन आप इस सुनसान हवेली में अकेले क्यों रहते हैं? आपका व्यक्तित्व इतना रहस्यमय क्यों महसूस होता हैं?"
"मेरे जीवन में कुछ चीजें ऐसी हैं जिन्हें मैं भूल नहीं सकता। मुझे इसका सामना अकेलेही करना है और उसके लिए मुझे एकांत की जरुरत होती है," राजवीर ने जवाब दिया।
राजवीरका जवाब सुनने के बाद आर्या थोड़ा हल्का महसूस कर रही थी। वह मुस्कुराई और उससे कहा, "ठीक है, लेकिन अगली बार जब में यहाँ आउ तब मुझे वह लाल शरबत देना मत भूलना, और हाँ मैं इतने लंबे समय से तुमसे बात कर रही हूँ, और तुम पर आरोप पर आरोप लगा रही हूँ, इसलिए नाराज भी मत होना।"
"मेरा नाम आर्या है।"
"राजवीर" उसने धीरे से अपना नाम बताया।
उसने राजवीर की मुस्कान देखी और धीरे से हवेली से बाहर निकल गई।
आर्या की संतुष्टि की बजह से राजवीर थोड़ा शांत हो गया था, लेकिन वह जानता था कि यह बात यहां नहीं रुकेगी। आर्या उसके लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु बन चुकी है, लेकिन उसके करीब रहना उसके लिए खतरनाक हो सकता था।
"इससे पहले कि मेरा वास्तविक रूप उसे पता चले, मुझे उसके जीवन से दूर जाना होगा, और इस कारण मुझे रहने के लिए कोई नई जगह खोजनी पड़ेगी, जो केवल उसका दोस्त "आशय " ही बता सकता है। लेकिन वह नहीं जानता था कि अब आशय कहां है ," लेकिन वह जानता था कि आर्याका आकर्षण लगातार उसे आर्या की ओर खींच रहा था।
क्रमशः
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