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रक्तपिशाच का रक्तमणि ५३

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ५३


राजवीर ज़मीन पर गिरा हुआ था। उसके माथे पर, जहाँ रक्तमणि लगा था, वहा एक चोट का निशान उभर आया था। कुछ क्षण पहले, आर्या और बलदेव ने ऐसा करने की हिम्मत की थी,  राजवीर के कोट में रखा रक्तमणि उसके सर पर जोर से लगा हुआ था, जिससे उसका असर कुछ देर के लिए कम हो चूका था।

आर्या, जिसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, फिर से राजवीर के पास गई। "राजवीर?" उसने धीमी आवाज़ में पूछा।

उसने धीरे से अपनी आँखें खोलने की कोशिश की। उसकी आँखें अब लाल नहीं लग रही थीं, उसका चेहरा अब गुस्से से भरा नहीं था। उसने एक पल के लिए खुद को संभाला, फिर आर्या और बलदेव की तरफ देखा।

"मेरा सिर बहुत भारी लग रहा है...??

राजवीर ने अपने हाथ की तरफ देखा। उसकी नसें ठीक लग रही थीं। उसने कुछ देर मन ही मन सोचा।

"तो... यह असर खतम हो गया है?"

"हाँ," आर्या ने कहा, "लेकिन हमेशा के लिए नहीं। हमें इसके लिए कोई ठोस उपाय ढूँढ़ना होगा।"

"अब हमें जल्द से जल्द सहस्त्रपाणि को ढूँढ़ना होगा और इस रक्तमणि का इस्तेमाल उसके खिलाफ करना होगा," राजवीर ने दृढ़ता से कहा।

बलदेव ने सिर हिलाया। "हाँ, लेकिन इसके असर तुम्हें फिर से परेशान कर सकते हैं। हमें थोड़ा सावधान रहना होगा।"

आर्या और बलदेव की मदद से राजवीर पूरी तरह ठीक हो गया। उसने अपने थैले से रक्तमणि निकाला। वह अभी भी गर्म लग रहा था, उसकी लालिमा डरावनी थी।

"हमें अब इसका इस्तेमाल सहस्त्रपाणि को खत्म करने के लिए करना चाहिए," राजवीर ने कहा। "मुझे नहीं पता कि इसके क्या परिणाम होंगे, लेकिन अगर मैं नियंत्रण खो दूँ, तो तुम्हें मुझे रोकना होगा।"

आर्या और बलदेव ने एक-दूसरे की तरफ देखा। उनके सामने एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन अब पीछे मुड़ने का कोई रास्ता नहीं था।

दूसरी ओर, सहस्त्रपाणि अपने सिंहासन पर विराजमान था। उसके सामने दुर्मद और क्रूरसेन खड़े थे।

"क्या तुम्हें यकीन है?" सहस्त्रपाणि ने पूछा।

"हाँ, राजवीर को रक्तमणि मिल चुकी है," क्रूरसेन ने कहा। "और उसने अपने दोस्तों के साथ तुम्हारे विरुद्ध युद्ध की तैयारी शुरू कर दी है।"

सहस्त्रपाणि ने चुपचाप अपनी आँखें बंद कर लीं और उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई। "वे युद्ध के लिए आ रहे हैं, यह अपेक्षित था," उसने धीरे से कहा। "लेकिन उन्हें यह एहसास नहीं है कि रक्तमणि कोई साधारण हथियार नहीं है। यह जिसके पास होता है सबसे पहले उसीको अंधकार की  तरफ खींच लेता है।"

क्रूरसेन और दुर्मद ने एक-दूसरे की ओर देखा। सहस्त्रपाणि की रणनीति ने उन्हें हमेशा चकित किया था।

"उसके दोस्त उसके ही हाथों मारे जाएँगे, और अंत में वह स्वयं भी मर जाएगा," सहस्त्रपाणि ने अजीब तरह से शांत स्वर में कहा।

"अब देखना यह है कि वह कब तक खुद को काबू में रख पाता है।"

सहस्त्रपाणि धीरे से मुस्कुराया। "क्या वह सोचता है कि वह मुझे रक्तमणि से मार सकता है? वह मूर्ख है! जो उस रक्तमणि को संभाल रहा है, वही उसका सबसे बड़ा दुश्मन होगा!"

दुर्मद ने पूछा, "तुम्हारा क्या मतलब है?"

सहस्त्रपाणि आगे बढ़ा। "जिसके पास रक्तमणि है, वह उसका गुलाम बन जाता है। Aasइससे पहले कि मैं उसे खत्म करूँ, उसे खुद को रक्तमणि से बचाना होगा। धीरे-धीरे, अंधकार उसके मन पर कब्ज़ा कर लेगा। और फिर वह मुझे बिल्कुल नहीं मारेगा, बल्कि खुद मेरी मदद करेगा, वह अपने करीबियों को एक-एक करके खत्म कर देगा।"

दुर्मद और क्रुरसेन ने एक-दूसरे की ओर देखा।

क्रूरसेन ने आगे पूछा, "और आर्या? क्या वह सुरक्षित रहेगी?

हाँ, उसे कुछ नहीं होगा। क्योंकि उसके गर्भ में पल रहा बच्चा... अप्राकृतिक रूप से जन्म ले रहा है, एक मानव और पिशाच के मिलन से पैदा हुआ एक शक्तिशाली बच्चा। वह उसकी रक्षा ज़रूर करेगा। उसका जन्म अभी बाकी है, वह अभी अपनी माँ को कुछ नहीं होने देगा, वह उसे किसी भी खतरे से बचाएगा।"

क्रूरसेन ने पूछा, "तो फिर हमें क्या करना चाहिए?"

सहस्त्रपाणि ने शांति से कहा, "हमें बस इंतज़ार करना चाहिए। रक्तमणि अपना काम करेगा। हमें राजवीर पर हमला करने की कोई ज़रूरत नहीं है। वह खुद अपने दोस्तों को मार डालेगा।"

"ये तो हमें पताही नहीं था," दुर्मद ने छोटे बच्चे की तरह कहा।

दुर्मद और क्रुरसेन ने सहस्त्रपाणि को प्रशंसा भरी नज़रों से देखा। उसकी हर रणनीति में एक दुष्ट बुद्धि छिपी थी, जो आसानी से किसी को समझ नहीं आती थी।

"राजवीर को मारने के लिए उस पर खुद हमला करने की कोई ज़रूरत नहीं है, रक्तमणि धीरे-धीरे उसे खत्म कर देगा। जैसे-जैसे उसके मन पर छाया अंधेरा गहराता जाएगा, वह अपने प्रियजनों पर हमला करेगा और अंततः खुद को खत्म कर लेगा।" सहस्त्रपाणि ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,

"अब हमें बस इंतज़ार करना होगा और इस खेल का अंत देखना होगा।" दुर्मद और क्रूरसेन ने एक-दूसरे को देखा और उनके चेहरों पर एक क्रूर संतुष्टि झलक उठी।

दुर्मद और क्रूरसेन अब सहस्त्रपाणि की रणनीति से पूरी तरह प्रभावित थे।

जैसे-जैसे आर्या चल रही थी, विनायक की किताब के शब्द उसके मन में गूंज रहे थे।

"राजवीर को खुद को बचाना होगा..." इसका क्या मतलब हो सकता है? रक्तमणि के अभिशाप को तोड़ने का कोई रास्ता तो ज़रूर होगा, लेकिन उसे खुद ही कोशिश करनी होगी। उसके मन में चिंता की एक लहर दौड़ गई। राजवीर अब भी पहले जैसा शांत दिख रहा था, लेकिन उसने देखा था कि वह पहले जैसा नहीं रहा। उसकी चाल में एक अलग तरह की तेज़ी थी, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। सहस्त्रपाणि को खत्म करने का उसका दृढ़ निश्चय दृढ़ था, लेकिन साथ ही, आर्या अपने मन में गहरे बढ़ते रक्तमणि का प्रभाव महसूस कर सकती थी।

यह सिर्फ़ एक युद्ध नहीं था; यह राजवीर की आत्मा का युद्ध था। बलदेव ने उसकी ओर देखा, मानो उसकी भी यही चिंता हो। वे दोनों राजवीर को इस संकट से कैसे बचाएँगे? अगर वह खुद खुदसे लड़ने के लिए तैयार नहीं है, तो किसी भी बाहरी शक्ति के लिए उसे बचाना असंभव था।

वह पीछे मुड़ी और राजवीर को देखा। वह वैसा ही दिख रहा था जैसा कुछ क्षण पहले था, लेकिन वह जानती थी कि उसके भीतर का युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है।

बलदेव की आवाज़ गंभीर थी। वह जंगल के अँधेरे रास्ते को देखते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। "हमें तैयार रहना होगा... किसी भी क्षण यह रक्तमणि उसे फिर से निगल सकता है," उसने धीमी आवाज़ में कहा, लेकिन उसके शब्दों में डर का हल्का कंपन था। हालाँकि राजवीर कुछ देर के लिए सामान्य लग रहा था, लेकिन वह पूरी तरह से आज़ाद नहीं था।

रक्तमणि के प्रभाव में उसका स्वभाव धीरे-धीरे बदल रहा था, कभी वह शांत दिखाई देता, तो कभी उसकी आँखों में एक अजीब सी क्रूरता चमक उठती। यह निश्चित रूप से सहस्त्रपाणि के इरादों का हिस्सा था। शायद वह जानता था कि जो भी उसे मारने की कोशिश करेगा, रक्तमणि उसके शिकार को पहले ही मार डालेगा।

बलदेव यह भी जानता था कि राजवीर भले ही आर्या का पति था, लेकिन अब वह एक खतरनाक हथियार बन चुका था, एक ऐसा हथियार जो अस्तित्व, अमरता और पागलपन के कगार पर खड़ा था। आर्या ने उसकी ओर देखा, उसके चेहरे पर बेचैनी की एक छाया थी।

"हम उसे कैसे बचा सकते हैं?" उसने फुसफुसाते हुए पूछा। बलदेव ने गहरी साँस ली।

"मैं इस बारे में सोच रहा हूँ, लेकिन हमें कोई फैसला लेना होगा। क्योंकि अगर रक्तमणि उस पर फिर से हमला करता है, तो शायद... शायद हमें बिना कुछ सोचे-समझे उससे लड़ना होगा।"

इस विचार मात्र से आर्या सिहर उठी।

राजवीरने बलदेव की बातें सुनीं, लेकिन वह बिना कुछ कहे चलता रहा। उसकी आँखों में एक अजीब सी शांति थी, लेकिन उसके पीछे एक समझ से परे बेचैनी भी थी। उसके मन में एक द्वंद्व चल रहा था, वह अपने दोस्तों के भरोसे और रक्तमणि से मिली क्रूरता की लालसा के बीच फँसा हुआ था।

आर्या और बलदेव सावधानी से उसके पीछे-पीछे चल रहे थे, बिना कुछ बोले एक-दूसरे को देख रहे थे। उस अँधेरी रात में, सहस्त्रपाणि के किले की रूपरेखा धुंध के बीच से साफ़ दिखाई देने लगी थी, किसी प्राचीन राक्षस के फैले हुए पंखों की तरह, भयानक और अभेद्य। एक महायुद्ध छिड़ने वाला था, न सिर्फ़ सहस्त्रपाणि के विरुद्ध, बल्कि राजवीर के भीतर भी पनप रहे अंधकार के विरुद्ध भी। अगर उसे यह युद्ध जीतना होगा, तो उसे न सिर्फ़ अपनी तलवार की शक्ति का, बल्कि अपनी बुद्धि की शक्ति का भी इस्तेमाल करना पड़ने वाला था।

क्रमशः


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